Team West Indies After Winning T20 World Cup 2016
Author :Priti Singh | Date :09 Apr 2016
अक्सर सुना है कि अभावों में प्रतिभायें पनपती हैं और कमाल कर जाती हैं। इस बात को अक्षरश: साबित कर दिखाया वेस्टइंडीज की टीम ने। एक ऐसी टीम जिसके पास न तो संसाधन थे और न ही सुविधायें। लेकिन, इन सभी बातों को धता बताते हुए वेस्टइंडीज ने टी-20 वर्ल्ड कप जीतकर पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। यही नहीं, टी-20 महिला वर्ल्ड कप और अंडर-19 वर्ल्ड कप भी साथ में जीतकर वेस्टइंडीज ने एक ही वर्ष में जीत की अद्भुत तिकड़ी पूरी की। 14 फरवरी 2016 को अंडर-19 वर्ल्ड कप जीतने के बाद 3 अप्रैल 2016 को एक ही दिन महिला और पुरुष टीमों का वर्ल्ड चैम्पियन बनना, वेस्टइंडीज की ‘तिहरी’ सफलता ने लोगों की जुबान पर ताले लगा दिये।
ये जीत कोई साधारण घटना नहीं है। ये वो टीम थी जिसके खिलाड़ियों को ये तक नहीं पता था कि उन्हें वर्ल्ड कप खेलने जाना है या नहीं। ये वो टीम थी जिसके खिलाड़ियों का अपमान उसी का क्रिकेट बोर्ड हर दिन कर रहा था। और तो और ‘धनकुबेर’ टीमों को हराने वाली डैरेन सैमी की इस टीम के पास अपनी जर्सी तक नहीं थी। उनके पास कुछ था तो वो थी हिम्मत, हौसला और संघर्ष करने का माद्दा। जिद थी कुछ करने की और अपनी एक पहचान बनाने की। उनके इसी जज्बे ने उन्हें हार नहीं मानने दिया और मार्लन सैमुएल्स के धैर्यपूर्ण नाबाद 85 रन और मात्र दो मैच खेले हुए खिलाड़ी कार्लोस ब्राथवेट के चार और वो भी लगातार गगनचुम्बी छक्कों ने असम्भव-सी लगने वाली जीत को सम्भव कर दिया।
ऐसा चमत्कार हर बार नहीं होता। ये तब होता है जब सामने करो या मरो की स्थिति होती है। कुछ ऐसा ही हाल वेस्टइंडीज की टीम का था। दरअसल, वेस्टइंडीज कोई देश नहीं, बल्कि कई छोटे-छोटे टापुओं को मिलाकर बनाया गया एक संगठन है, जिसकी पहचान दुनिया भर में क्रिकेट खेलने वाली टीम ‘वेस्टइंडीज’ के रूप में है। यहां क्रिकेट खिलाड़ियों और क्रिकेट बोर्ड के बीच मतभेद था। मतभेद इतना बढ़ गया कि बोर्ड ने क्रिस गेल जैसे महान खिलाड़ी को संन्यास लेने की सलाह दे डाली। अपमान के इस घूंट को पीकर गेल ने इसका जवाब इंग्लैंड के खिलाफ सबसे तेज शतक बनाकर दिया।
ये भी सोचने वाली बात है कि जिस क्रिकेट बोर्ड ने राष्ट्रीय टीम की इतनी अवहेलना की हो, उस देश में महिला क्रिकेट टीम और अंडर-19 जूनियर क्रिकेट टीम के साथ कैसा बर्ताव किया गया होगा। उपेक्षायें और हिकारत भरा व्यवहार वहां भी रहा होगा, पर इस ओर मीडिया का ध्यान कम गया। लेकिन इससे जो घाव उनके अंतर्मन पर पड़े वो कम नहीं आंका जा सकता। इसके बावजूद चाहे वेस्टइंडीज की महिला क्रिकेट टीम हो, चाहे अंडर-19 जूनियर क्रिकेट टीम या फिर वेस्टइंडीज की राष्ट्रीय (पुरुष) टीम, किसी ने अपने टूटे मन को हार नहीं मानने दिया। वो लड़े और अंत तक लड़कर आखिरकार जीत को हासिल करके ही दम लिया।
वेस्टइंडीज के हरेक खिलाड़ी में जीत के प्रति भूख दिखी। ये भूख दरअसल उस अपमान की टीस थी जिसे उन्होंने अपने ही देश में अपने लोगों के बीच सहा था। इसीलिए टीम के सारे खिलाड़ियों ने अपनी सारी ताकत खिताब जीतने की ओर लगाया और ये साबित कर दिया कि अगर हिम्मत और हौसला हो तो साधनहीनता रास्ते का रोड़ा कभी नहीं बनती।
हमारी ओर से इस जीत को और उसके जज्बे को सलाम। ये जीत न सिर्फ वेस्टइंडीज के चंद खिलाड़ियों की जीत है। वरन् ये जीत उनलोगों की है जो अभावों को अपनी कमजोरी नहीं मजबूती समझकर विपरीत परिस्थितियों में भी लड़ना नहीं छोड़ते और उसे अपनी शक्ति बनाते हैं।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह