राज कपूर के सपनों को आकार देने वाला आरके स्टूडियो, जिसके नाम कई क्लासिक फिल्में दर्ज हैं, आखिरकार बिक गया। भारतीय सिनेमा की इस अनमोल धरोहर तो न तो कपूर खानदान सहेज कर रख पाया और न ही सरकार की ओर से कोई कदम उठाया गया। कल इसके बिकने की ख़बर सार्वजनिक कर दी गई। भारतीय सिनेमाई इतिहास की इससे बड़ी क्षति क्या हो सकती है कि अब यहां लाइट, कैमरा, एक्शन की जगह हथौड़े की गूंज सुनाई देगी। जी हाँ, 2.20 एकड़ में फैले 70 साल पुराने आइकॉनिक आरके स्टूडियो को गोदरेज ग्रुप की सहायक कंपनी गोदरेज प्रोपर्टीज लिमिटेड ने खरीद लिया है। अब आरके स्टूडियो के 33 हजार वर्गमीटर क्षेत्र में मॉडर्न रेजिडेंसियल अपार्टमेंट और लग्जरी रिटेल स्पेस डेवलप किया जाएगा। गौरतलब है कि लंबे समय से आरके स्टूडियो का इस्तेमाल नहीं हो रहा था। साल 2017 के सितंबर में आग लगने से स्टूडियो लगभग पूरी तरह बर्बाद हो गया था, जिसके बाद से स्टूडियो को बेचने की ख़बरें सामने आ रही थीं।
बहरहाल, 1948 में जब राज कपूर ने चेंबूर इलाके में आरके स्टूडियो की नींव रखी थी तब ये इलाका बहुत ही कम आबादी वाला मुंबई का एक उपनगर था और मुंबई से खंडाला-लोनावाला के रूट के रूप में जाना जाता था। इसके लिए उन्होंने अपनी पाई-पाई जोड़ने के साथ ही कर्ज भी लिया था। हालांकि उन्होंने वो कर्ज जल्द ही उतार दिया था। यहां बनी फिल्म ‘बरसात’ (1949) इतनी बड़ी हिट साबित हुई कि उन्होंने कर्ज उतारने के साथ ही यहां कि 2.20 एकड़ जमीन भी खरीद ली। इसके बाद यहां एक के बाद एक कई अमर फिल्में बनीं जिनमें आवारा (1951), बूट पॉलिश (1954), श्री 420 (1955), जागते रहो (1956), जिस देश में गंगा बहती है (1960), मेरा नाम जोकर (1970), बॉबी (1973), सत्यम शिवम सुन्दरम (1978), प्रेम रोग (1982) और राम तेरी गंगा मैली (1985) जैसी फिल्में शामिल हैं। आरके स्टूडियो की अंतिम फिल्म ‘आ अब लौट चलें’ थी जिसका निर्माण साल 1999 में हुआ था। बता दें कि 1988 में राज कपूर के निधन के बाद इस स्टूडियो में दूसरी फिल्मों की शूटिंग का रास्ता खोला गया था और आग लगने की घटना तक यहां फिल्मों के साथ ही टीवी सीरियलों की शूटिंग भी हुआ करती थी।
आरके स्टूडियो, जिस पर राज कपूर के तीनों बेटों रणधीर कपूर, ऋषि कपूर और राजीव कपूर का मालिकाना हक था, के बेचे जाने की ख़बर की पुष्टि करते हुए राज कपूर के बड़े बेटे रणधीर कपूर ने कहा कि ये उनके लिए दुखद दिन है, लेकिन इसे बेचे जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा था। उन्होंने कहा कि चेंबूर की यह प्रोपर्टी कई दशकों से हमारे परिवार की एक पहचान थी। अब हमने गोदरेज प्रोपर्टीज को इसका नया इतिहास बनाने के लिए चुना है। उनके दूसरे बेटे ऋषि कपूर ने भी कहा कि अग्निकांड में उनके पिता की फिल्मों के इस्तेमाल होने वाली ड्रेसेज और बाकी सामान जलकर राख हो गए थे जिसके बाद इसे फिर से पुरानी स्थिति में लाना असंभव हो गया था।
चलते-चलते बता दें कि इस स्टूडियो के पास ही देवनार में राज कपूर का बंगला था, जिसे देवनार कॉटेज नाम दिया गया था। राज कपूर के निधन के बाद रणधीर कपूर और राजीव कपूर वहीं रहते थे, जबकि ऋषि कपूर अपने परिवार के साथ बांद्रा शिफ्ट हो गए। राज कपूर के परिवार की अनगिनत यादें इससे जुड़ी हैं, पर इस स्टूडियो का कैनवास और इसका अवदान इतना बड़ा है कि इससे करोड़ों भारतीय और सिनेमाप्रेमी भावनात्मक रूप से जुड़े रहे हैं। इसका बिकना उन सबके लिए और सबसे अधिक भारतीय सिनेमा के इतिहास के लिए बेहद तकलीफदेह है, जिसकी टीस शायद ही कभी कम हो।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप