पहले चुनाव आयोग, फिर राज्यसभा सचिवालय और अब हाईकोर्ट… ना जाने बार-बार आईना दिखाए जाने के बावजूद शरद यादव ऐसा क्यों कर रहे हैं? उन जैसा वरिष्ठ राजनीतिज्ञ इस तरह का ‘बालहठ’ करे और वो भी तब जबकि हश्र उन्हें पता है, समझ के परे है! बहरहाल, दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी राज्यसभा सदस्यता जाने के मामले में दखल देने से इनकार किया है। हालांकि कोर्ट ने आदेश दिया कि यादव को भत्ते और सरकारी बंगले का लाभ मिलता रहेगा। क्यों और कब तक, यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है। बता दें कि शरद यादव ने बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर खुद को राज्यसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराए जाने के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू के फैसले को चुनौती दी थी।
गौरतलब है कि जेडीयू की अपील पर राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 4 दिसंबर को शरद यादव और उनके साथ अली अनवर को राज्यसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया था। शरद यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के भाजपा से हाथ मिलाने के बाद ही अलग रास्ता अपना लिया था। पार्टी लाईन से अलग जाकर उन्होंने न केवल इस निर्णय का खुलकर विरोध किया, बल्कि बेतुका दावा भी किया कि उनकी अगुआई वाला जेडीयू धड़ा ही असली जेडीयू है और चुनाव आयोग के सामने जेडीयू के चुनाव चिह्न तीर पर अपना दावा भी कर दिया। जैसा कि होना ही था, चुनाव आयोग ने उनके दावे को खारिज कर दिया। बाद में उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने शरद यादव और अली अनवर की राज्यसभा सदस्यता खत्म करने का आदेश दिया।
राज्यसभा के सभापति ने जेडीयू के उस तर्क को स्वीकार किया कि शरद व अनवर ने पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन कर और विपक्षी पार्टियों के कार्यक्रम में शामिल होकर अपनी पार्टी सदस्यता का ‘स्वतः ही त्याग’ कर दिया है। जेडीयू ने शरद और अनवर की राज्यसभा सदस्यता खत्म करने के लिए सदन के सभापति से अनुरोध किया था। चलते-चलते बता दें कि शरद पिछले साल ही राज्यसभा के लिए चुने गए थे और उनका कार्यकाल 2022 में खत्म होने वाला था, जबकि अनवर का कार्यकाल अगले साल खत्म होने वाला था।
बोल डेस्क