सरदार पटेल के दो बच्चे थे। मणिबहन (बेन) बेटी थीं और डाह्याभाई बेटे। पटेल की मृत्यु के बाद जवाहरलाल नेहरू ने उनके दोनों ही बच्चों को संसद में भेजा। मणिबहन दक्षिण कैरा लोकसभा सीट से 1952 में और फिर आनंद सीट से 1957 में कांग्रेस के टिकट पर चुनी गईं। 1962 में गैप हो गया, तो नेहरू ने उन्हें छह साल के लिए राज्यसभा की सदस्य के रूप में निर्वाचित करवाया। अपनी बेटी इंदिरा गांधी को उन्होंने अपने जीवनपर्यंत चुनाव लड़ने का टिकट नहीं मिलने दिया, जबकि इंदिरा बहुत उत्सुक रहती थीं। नेहरू की मृत्यु के बाद ही इंदिरा को संसद के दर्शन हुए। मणिबहन ने इमरजेंसी का विरोध किया था और जनता पार्टी के टिकट पर वह 1977 में मेहसाना से चुनाव जीतीं। वह एक बहुत ही परिपक्व राजनीतिक कार्यकर्ता थीं। मणिबहन के नाम पर ही वह शहर बसा है, जो कुछ साल पहले तक नरेंद्र मोदी का विधानसभा क्षेत्र हुआ करता था। डाह्याभाई बंबई में एक बीमा कंपनी में काम करते थे। वह मणिबहन से तीन साल छोटे थे। वह भी कांग्रेस के टिकट पर 1957 और 1962 में लोकसभा के सदस्य रहे। बाद में 1970 में राज्यसभा के सदस्य बने और मृत्युपर्यंत रहे। यह सूचना उन लोगों के लिए है, जो अक्सर कहते हैं कि नेहरू ने पटेल के बच्चों को अपमानित किया था।
बोल डेस्क [‘हिन्दुस्तान’ में शेष नारायण सिंह]