पांच दशक होने को आए जब मनुष्य ने चन्द्रमा पर पहला कदम रखा था। वो दिन था 20 जुलाई 1969 जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के दो एस्ट्रोनॉट नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रीन अंतरिक्ष विमान अपोलो 11 में सवार होकर चांद पर पहुंचे थे। तब से अब तक विज्ञान ने बेहिसाब तरक्की की है और नई-नई खोजों का सिलसिला अनवरत जारी है। खासकर चन्द्रमा को लेकर हमारी उत्सुकता प्रारंभ से ही कुछ अलग रही है। कहना गलत न होगा कि यह हमारी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा है। न जाने कितनी ही कविताएं इस पर रची गई होंगी और कितनी ही कहानियां इससे जुड़ी हुई होंगी। अकारण नहीं कि दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इसके अलग-अलग पहलुओं पर तरह-तरह की जानकारियां इकट्ठी की हैं। आज हम चन्द्रमा के बारे में आपको एक ऐसी जानकारी से अवगत कराएंगे कि आप बस चौंक जाएंगे।
जी हां, सुनकर शायद अविश्वसनीय लगे लेकिन जापान के वैज्ञानिकों को चांद पर एक बहुत बड़ी गुफा का पता चला है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस गुफा में चन्द्रमा पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट रह सकते हैं। इससे वे खतरनाक विकिरण और तापमान में बदलाव से बच सकते हैं। जापान के एईएईएनई लूनर ऑर्बिटर से मिले आंकड़ों के अनुसार चांद पर मौजूद यह गुफा 3.5 अरब साल पहले भूगर्भ के अंदर हुई हलचल की वजह से बनी होगी। इस गुफा की लंबाई 50 किलोमीटर और चौड़ाई 100 मीटर है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह गुफा भूगर्भ से निकले लावे की वजह से तैयार हुई होगी। जापानी वैज्ञानिकों के ये आंकड़े और नतीजे अमेरिकी पत्रिका ‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स’ में भी प्रकाशित हुए हैं।
जापानी वैज्ञानिक जुनिची हारुयामा ने गुरुवार को कहा, ‘हमें अभी तक ऐसी चीज के बारे में पता था और माना जाता था कि यह लावा ट्यूब हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी की पुष्टि पहले नहीं हुई थी।’ जमीन के अंदर मौजूद यह गुफा चंद्रमा के मारियस हिल्स नामक जगह के पास है। बकौल हारुयामा इस गुफा में रह कर अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा प्रवास के दौरान विकिरण और तापमान में होने वाले तेज बदलावों के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं।
चलते-चलते बता दें कि जापान ने इसी साल जून में साल 2030 तक चंद्रमा पर अंतरिक्ष मिशन भेजने की घोषणा की है। इधर भारत और चीन भी अपने-अपने अंतरिक्ष यात्री चन्द्रमा पर भेजने की तैयारी कर रहे हैं। चन्द्रमा पर इंसानी बस्ती बसाने की तैयारी जोरों पर है। अब वो दिन दूर नहीं जब चंदा मामा से हम सचमुच अपने मामा के जैसे मिल पाएंगे।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप