विश्व बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत उन 12 देशों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर है, जहां दूसरी कक्षा के छात्र एक छोटे से पाठ का एक शब्द भी नहीं पढ़ पाते। इस सूची में मलावी पहले स्थान पर है। भारत समेत निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अपनी स्टडी का हवाला देते हुए विश्व बैंक ने कहा कि बिना ज्ञान के शिक्षा देना ना केवल विकास के अवसर को बर्बाद करना है, बल्कि दुनियाभर में बच्चों और युवाओं के साथ बड़ा अन्याय भी है।
विश्व बैंक द्वारा जारी ‘वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2018: लर्निंग टु रियलाइज एजुकेशंस प्रॉमिस’ का कहना है कि इन देशों में लाखों युवा छात्र बाद के जीवन में कम अवसर और कम वेतन की आशंका का सामना करते हैं, क्योंकि उनके प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल उन्हें जीवन में सफल बनाने के लिए शिक्षा देने में विफल हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण भारत में तीसरी कक्षा के तीन चौथाई छात्र यानि 75 प्रतिशत बच्चे दो अंकों के जोड़-घटाव वाले सवाल को हल नहीं कर सकते और पांचवीं कक्षा के आधे यानि 50 प्रतिशत छात्रों की यही स्थिति है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बिना ज्ञान के शिक्षा गरीबी मिटाने और सभी के लिए अवसर पैदा करने और समृद्धि लाने के अपने वादे को पूरा करने में विफल होगी। यहां तक कि स्कूल में कई वर्ष बाद भी लाखों बच्चे पढ़-लिख नहीं पाते या गणित का आसान-सा सवाल हल नहीं कर पाते। ज्ञान का यह संकट सामाजिक खाई को छोटा करने के बजाय उसे और गहरा बना रहा है।
विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष जिम योंग किम ने इस संदर्भ में कहा कि ‘ज्ञान का यह संकट नैतिक और आर्थिक संकट है। जब शिक्षा अच्छी तरह दी जाती है तो यह युवाओं से रोजगार, बेहतर आय, अच्छे स्वास्थ्य और बिना गरीबी के जीवन का वादा करती है। समुदायों के लिए शिक्षा खोज की खातिर प्रेरित करती है, संस्थानों को मजबूत करती है और सामाजिक सामंजस्य बढ़ाती है। ये फायदे शिक्षा पर निर्भर करते हैं और बिना ज्ञान के शिक्षा देना अवसर को बर्बाद करना है।’ बहरहाल, इस रिपोर्ट में ज्ञान के गंभीर संकट को हल करने के लिए विकासशील देशों की मदद करने के लिए ठोस नीतिगत कदम उठाने की सिफारिश की गई है।
बोल डेस्क