आज जबकि पार्टियां प्राईवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाई जा रही हैं, ऐसे में किसी राजनीतिक पार्टी के शीर्ष नेता के परिवार से किसी का राजनीति में न रहना और उस नेता का अपने न रहने की स्थिति में पार्टी के अस्तित्व की चिन्ता करना सचमुच बड़ी बात है। ये चिन्ता बताती है कि वह नेता पद, पावर और परिवार के लिए नहीं, उन विचारों और मुद्दों के लिए परेशान है, जिसे अपनी पार्टी के माध्यम से वो मुकाम तक पहुंचाना चाहता है। यहां बात की जा रही है, बिहार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार की, जिन्होंने 24 सितंबर को हुई राज्य कार्यकारिणी की बैठक में यह कहकर सबको चौंका दिया कि “अगर कल को मेरी मृत्यु हो जाती है, तो पार्टी का क्या होगा?”
बैठक में मौजूद वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में नीतीश कुमार ने हजारों सभाएं और बैठकें की हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब उन्होंने इस तरह की बात कही हो। जब इस बारे में नीतीश से पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा तो उन्होंने जवाब दिया कि कौन जानता है कल क्या होगा? हालांकि आगे उन्होंने जोड़ा कि अरे ऐसे ही मुंह से निकल गया, कुछ खास नहीं।
यहां गौर करने की जरूरत है कि नीतीश कुमार हमेशा अपनी बातों को बड़े ही व्यावहारिक और तार्किक तरीके से रखने के लिए जाने जाते हैं। अब अगर उन्होंने अगर ऐसी चिन्ता जाहिर की है तो यह भी अकारण नहीं है। शायद वे ऐसा कहकर नेताओं और कार्यकर्ताओं को याद दिलाने चाहते हैं कि उन्होंने पार्टी के लिए कितनी मेहनत की है ताकि उसी अनुपात में पार्टी के बाकी लोग भी अपनी भूमिका निभाएं। अगर वे पार्टी के लोगों को जेडीयू की बुनियादी विचारधारा की याद दिलाने चाहते हैं, देश और समाज के लिए उनकी प्रतिबद्धता को एक नई धार देने चाहते हैं, अपने विचार का फैलाव अपने बाद भी चाहते हैं तो यह एक सच्चे और अच्छे नेता की निशानी है।
बहरहाल, राज्य कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश ने कहा कि जब तक मैं जिन्दा हूं तब तक बिहार से शराबबंदी का निर्णय वापस नहीं लिया जा सकता। अगर किसी को मेरे निर्णय से समस्या है तो वह मुझे मार सकता है लेकिन मैं इस नियम को किसी सूरत में नहीं हटाऊंगा। अपनी प्रतिबद्धता को इन शब्दों में जाहिर करना बताता है कि नीतीश राजनीति की नई परिभाषा गढ़ने की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। अब राजनीति को वे बड़े सामाजिक बदलावों का माध्यम बनाना चाहते हैं। बैठक में शराबबंदी के बाद बाल विवाह और दहेज प्रथा पर चोट करने का संकल्प इसी की पुष्टि करता है।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप