बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सामना सात साल बाद एक बार फिर गुजरात सरकार के ‘पांच करोड़’ से हुआ। मदद की राशि वही, वजह भी वही, लेकिन तब तब लौटा दी गई इतनी ही राशि नीतीश ने इस बार स्वीकार कर ली। समय की ताकत और सत्ता-समीकरण में बदलाव का यह एक बड़ा उदाहरण है। यह संयोग से कुछ अधिक है कि इन सात सालों में मोदी राज्य से निकलकर केन्द्र में विराजमान हो गए, उनकी ताकत और देश की महंगाई दोनों बेहिसाब बढ़ी लेकिन गुजरात सरकार ने मदद की राशि उतनी ही रखी। हो सकता है ऐसा संयोगवश हुआ हो लेकिन जो राजनीति की मोदी-शैली को थोड़ा भी जानते हों, वो शायद ही इस पर यकीन कर पाएं।
बहरहाल, गुरुवार को गुजरात सरकार की तरफ से नीतीश कुमार को पांच करोड़ का चेक सौंपा गया। मुख्यमंत्री विजय रूपानी के प्रतिनिधि के तौर पर आए गुजरात सरकार के मंत्री भूपेन्द्र सिंह चूड़ास्मा ने बिहार में आई भयंकर बाढ़ के मद्देनजर मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए नीतीश को यह चेक दिया। बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी उस समय मौजूद थे।
गौरतलब है कि साल 2010 में बिहार में कोसी नदी का बांध टूट जाने की वजह से भारी तबाही हुई थी। उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। गुजरात सरकार ने आपदा राहत के तौर पर बिहार के लिए पांच करोड़ की मदद भेजी थी। लेकिन नीतीश ने इस मदद को लौटा दिया था। दरअसल पटना में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान कुछ कार्यकर्ताओं ने ऐसे पोस्टर लगा दिए थे जिसमें गुजरात की इस मदद को बढ़-चढ़कर प्रचारित किया गया था। नाराज नीतीश ने तब गुजरात के पैसे लौटाने के साथ ही भाजपा नेताओं के सम्मान में मुख्यमंत्री आवास में होने वाले भोज को भी रद्द कर दिया था। यही नहीं बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान नीतीश बार-बार इस मुद्दे पर मोदी को निशाने पर लेते रहे थे। नीतीश ने इसे बिहार के स्वाभिमान से जोड़ते हुए कहा था कि बिहार को किसी से खैरात नहीं चाहिए।
पर इन सात सालों में काफी कुछ बदल चुका है। कभी मोदी के नाम पर एनडीए से दोस्ती तोड़ने वाले नीतीश कुमार ने हाल ही में भाजपा की मदद से बिहार में सरकार बनाई है। तेजस्वी-प्रकरण के बाद उन्होंने महागठबंधन को तोड़ दिया था। अब बिहार कभी दो ध्रुवों की तरह दिखने वाले नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी की जुगलबंदी से चल रहा है। हालांकि इस जुगलबंदी से भविष्य में कौन-कौन से सुर निकलेंगे, अभी इसका अनुमान लगाना कठिन है। अभी का सच यह है कि विपक्ष की तमाम चुटकियों के बावजूद सात साल बाद नीतीश को ‘पांच करोड़’ स्वीकार्य हैं। और हां, चलते-चलते यह भी बता दें कि गुजरात सरकार की तर्ज पर झारखंड और छत्तीसगढ़ सरकार ने भी बिहार को पांच-पांच करोड़ रुपए ही दिए हैं। क्या सात साल पहले के ‘पांच करोड़’ की याद दिलाने को? कहने की जरूरत नहीं कि इन दोनों राज्यों में भी भाजपा की ही सरकार है।
बोल डेस्क