भाजपा के साम-दाम-दंड-भेद के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल राज्यसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे। उच्च सदन के लिए होने वाले चुनाव के इतिहास में ऐसा हाई वोल्टेज ड्रामा कभी नहीं हुआ था जैसा कल देखने को मिला। मंगलवार सुबह हुई वोटिंग के बाद गिनती देर रात शुरू हुई और पटेल जरूरी वोट हासिल करने में सफल हुए। पटेल के साथ ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी विजयी रहे, लेकिन पटेल की जीत ने भाजपा की खुशी को कमतर कर दिया।
दरअसल शाह और स्मृति की जीत तय थी। सारा पेंच पटेल और कांग्रेस के बागी बलवंत सिंह राजपूत के बीच फंसा था। बलवंत को भाजपा ने टिकट देकर पटेल के खिलाफ उतारा था। पार्टी को भरोसा था कि हाल ही में कांग्रेस के कुछ विधायकों के इस्तीफा देने और चुनाव के दिन वाघेला गुट व अन्य छोटी पार्टियों के क्रॉस वोटिंग करने से उसे तीसरी सीट भी मिल जाएगी। बीच का घटनाक्रम कुछ ऐसा रहा कि चुनाव का दिन आते-आते तीसरी सीट अमित शाह और समूची भाजपा के लिए नाक का मुद्दा बन गई। उधर कांग्रेस को पटेल की जीत के रूप में ‘संजीवनी’ की सख्त जरूरत थी।
बहरहाल, आक्रामक (और अब अतिक्रमणकारी) राजनीति में दक्षता हासिल कर चुके शाह ने पटेल के पांचवी बार राज्यसभा जाने का रास्ता लगभग रोक ही दिया था, पर कांग्रेस के दो बागी विधायकों – राघवजी भाई पटेल और भोला पटेल – की ‘भूल’ ने भाजपा का सारा खेल बिगाड़ दिया। दरअसल, राज्यसभा चुनाव गोपनीय लेकिन खुले पत्र के जरिए होते हैं और मतदान कर रहे विधायकों को वोट देने के बाद अपना मतपत्र अपनी पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखाना पड़ता है। लेकिन इन दो विधायकों ने भाजपा नेताओं को मतपत्र दिखा दिए। उनकी यह गलती भाजपा पर भारी पड़ी और चुनाव आयोग ने देर रात उनके वोट रद्द कर दिए। इस बीच चुनाव आयोग कांग्रेस और भाजपा का अखाड़ा बना रहा। दोनों पार्टियों के कितने ही दिग्गज नेता अलग-अलग प्रतिनिधिमंडल के साथ वहां आकर अपना-अपना पक्ष रखते रहे। पर कांग्रेस अपनी बातें तर्क और उदाहरण के साथ रखने में कामयाब रही। रही-सही कसर मतदान के वीडियो फुटेज ने दूर कर दी।
कुल पड़े 176 वोटों में 2 वोटों के रद्द होने के बाद 1 सीट जीतने के लिए 44 वोटों की दरकार थी जो अहमद पटेल को मिल गए। शाह और ईरानी तो सुरक्षित हो ही चुके थे। बचे बलवंत सिंह राजपूत उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन इससे शायद ही किसी को इनकार हो कि यह उनसे अधिक भाजपा की हार है। मोदी-शाह को अपनी ‘कर्मभूमि’ में मिली इस पटकनी की कसक लम्बे समय तक रहेगी।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप