अभी चौबीस घंटे भी नहीं हुए और बिहार की सियासत ने नई करवट ले ली। कल सुबह 10 बजे नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री थे, शाम 5 बजे अपनी पार्टी की बैठक करते हुए भी वे महागठबंधन सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, पर अभी घंटा भी नहीं बीता कि आबोहवा बदलनी शुरू हो गई और शाम के 7 बजते-बजते वे राज्यपाल को बतौर मुख्यमंत्री अपना इस्तीफा सौंप कर मीडिया के सामने मुखातिब थे और आज सुबह 10 बजे वे एनडीए विधायक दल के नेता के तौर पर छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले रहे थे और उसके कुछ ही मिनटों बाद उनकी बगल की कुर्सी पर बतौर उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी बैठे थे। जी हां, तेजस्वी-प्रकरण का पटाक्षेप चार साल बाद जेडीयू-भाजपा के दुबारा हाथ मिलाने और सत्ता में साथ वापस आने से हुआ।
नई सरकार के अस्तित्व में आते ही बिहार की सत्ता का सियासी गणित पूरी तरह बदल गया है। 243 सीट वाली बिहार विधानसभा में एनडीए के सहयोग से नीतीश बहुमत के आंकड़े 122 से आगे हैं। जेडीयू के 71 और भाजपा के 53 विधायक हैं। इनमें लोजपा के 2, रालोसपा के 2 और हम के 1 विधायक को जोड़ दें तो आंकड़ा 129 तक पहुंच जाता है। इसीलिए विश्वासमत हासिल करने में नीतीश को कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। चूंकि राज्यपाल ने दो दिनों के अंदर विश्वासमत हासिल करने को कहा है, इसीलिए नीतीश शुक्रवार को ही बहुमत साबित करेंगे।
बहरहाल, इधर एनडीए खेमे में ‘संबंध’ और ‘सरकार’ की नई पारी की तैयारी चल रही है, तो उधर तेजस्वी गवर्नर द्वारा नीतीश को सरकार बनाने के लिए बुलाने के फैसले को कोर्ट में चुनौती देने जा रहे हैं। तेजस्वी का तर्क है कि आरजेडी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी थी, इसीलिए सरकार बनाने का मौका उन्हें मिलना चाहिए था। जाहिर है कि आरजेडी अब स्थिर होकर नहीं रह सकती। सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की अगली सियासी चाल क्या होगी, इस पर पक्ष-विपक्ष सबकी निगाहें लगी हैं। बदले हालात में कांग्रेस के लिए लालू के साथ बने रहना उसकी मजबूरी हो गई है। पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह नीतीश कुमार पर ‘धोखा’ देने का आरोप लगाया है, उससे भी स्पष्ट है कि दोनों दल मिलकर कुछ सोच रहे हैं। विपक्ष के बाकी दल भी नीतीश के इस ‘मूव’ पर मंथन में लगे हैं।
इन सबके बीच जेडीयू के वरिष्ठ नेता व पूर्व अध्यक्ष शरद यादव नीतीश के इस कदम से ‘दुखी’ और ‘चिंतित’ बताए जा रहे हैं। राज्यसभा सांसद अली अनवर, महासचिव अरुण सिन्हा व जावेद रजा, पार्टी के केरल प्रमुख व राज्यसभा सांसद वीरेन्द्र कुमार आदि उनके आवास पर जुटकर इस संबंध में ‘आश्चर्य’ जता चुके हैं। उनका कहना है कि नीतीश ने अपना फैसला किसी से, यहां तक कि शरद यादव तक से, साझा नहीं किया।
राजनीति के जानकार बताते हैं कि शरद समेत अन्य सांसदों की निगाह अब जेडीयू के केन्द्र सरकार में शामिल होने और वैसी स्थिति में मंत्रीपद पाने पर है। शरद की तथाकथित नाराजगी को इस बाबत ‘दबाव बनाने की रणनीति’ के तौर पर भी देखा जा रहा है।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप