तेजस्वी-प्रकरण पर अपनी ‘नाक’ झुकाने से इनकार करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार शाम जेडीयू की बैठक के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया। गौरतलब है कि जेडीयू उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर सीबीआई के एफआईआर मामले में लगातार ‘बिन्दुवार स्पष्टीकरण’ और प्रकारांतर से इस्तीफे की बात कह रही थी, लेकिन आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने न केवल इस्तीफे से साफ इंकार किया बल्कि पूरे मामले पर न तो उन्होंने और न ही तेजस्वी ने ‘स्पष्टीकरण’ ही दिया। बकौल नीतीश कुमार ऐसी परिस्थिति में उनके लिए महागठबंधन सरकार को चलाना संभव नहीं रह गया था।
बहरहाल, नीतीश कुमार के इस्तीफे के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जुड़ने के लिए’ बधाई दी। इसके बाद लालू और उनकी पार्टी अभी अपनी भड़ास ही निकाल रहे थे कि घटनाक्रम तेजी से बदला और भाजपा ने बिना देर किए नीतीश को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। फिर ये ख़बर भी आते देर न लगी कि 1 अणे मार्ग पर भाजपा और जेडीयू विधायकों की संयुक्त बैठक हो रही है और नीतीश कुमार को एनडीए का नेता चुन लिया गया है। महज चंद घंटों में बिहार की सियासत की तस्वीर पूरी तरह बदल गई और ये स्पष्ट हो गया कि मानसून सत्र से पहले नीतीश सरकार अपने नए अवतार में होगी।
ख़बरों के मुताबिक जेडीयू-भाजपा गठबंधन रात में ही राजभवन जाकर सरकार बनाने का दावा पेश करेगा। हालांकि राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी अस्वस्थ बताए जा रहे हैं। उधर ‘विश्वासघात’ का आरोप लगा रही आरजेडी भी सबसे बड़ा दल होने के नाते चुप नहीं बैठेगी। बेचारी कांग्रेस बिहार के इन दो बड़े दलों के बीच पिस कर रह गई है, लेकिन जेडीयू-भाजपा के साथ आने के बाद अब उसके पास अधिक विकल्प ही नहीं हैं।
जो भी हो, अगर आपके पास अपनी ‘छवि’ की पूंजी हो और आप धुन के पक्के हों तो सितारे भी आपके मुताबिक चलने लगते हैं और आप एक ही दिन में मुख्यमंत्री का पद छोड़कर फिर से मुख्यमंत्री बन सकते हैं, नीतीश ने ये संभव करके दिखाया। रही बात लालू की, तो उन्होंने राजनीतिक परिपक्वता नहीं दिखाई। अगर उन्होंने समय रहते तेजस्वी से इस्तीफा दिलवा दिया होता तो न केवल उनका और तेजस्वी का कद बढ़ता और जनता की सहानुभूति उन्हें मिलती, बल्कि उनकी पार्टी सरकार में भी बनी रहती और महागठबंधन भी अटूट रहता। एक बात और, ऐसी स्थिति में वे वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी को उपमुख्यमंत्री बनवा कर अपने ‘माय’ समीकरण को भी मजबूत कर सकते थे। दूसरी ओर नीतीश कुमार हैं, उन्होंने समय की नब्ज को समझा और नैतिकता के साथ अपनी सरकार भी बचा ली।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप