विधानसभा चुनाव में मुंह के बल गिरने के बाद मायावती फिर से उठने और अपनी खोई जमीन पाने की कोशिश में बड़ी शिद्दत से लग गई हैं। कहने की जरूरत नहीं कि बसपा का आधार वोट दलित हैं और मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में उनकी बड़ी आबादी को पार्टी से जोड़े रखना आसान नहीं। इसके लिए फिलहाल उन्हें दो चीजें चाहिएं। पहली चीज है एक अदद मुद्दा जिसे वो भुना सकें और दूसरी चीज है पर्याप्त समय जो उस मुद्दे को भुनाने में लगा सकें। मंगलवार को अपने एक ‘मास्टरस्ट्रोक’ से उन्होंने ये दोनों चीजें एक साथ पाने की कोशिश की। इस दिन सहारनपुर हिंसा पर सदन में न बोल पाने से ‘क्षुब्ध’ मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया, जिसे गुरुवार को राज्यसभा के सभापति व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने स्वीकार कर लिया। ध्यातव्य है कि इस्तीफा तयशुदा प्रारूप में न होने के कारण पहले स्वीकार नहीं हुआ था। बाद में मायावती ने नियमानुसार इस्तीफा दिया, जिसे स्वीकार कर लिया गया।
बहरहाल, मायावती इस बात से नाराज थीं कि शून्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में दलितों पर हुए अत्याचार पर चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव पेश करने के बाद उन्हें बोलने के लिए सिर्फ तीन मिनट का समय दिया गया। उन्होंने इस पर कहा, “लानत है। अगर मैं कमजोर वर्ग की बात सदन में नहीं रख सकती तो मुझे सदन में रहने का अधिकार नहीं है।” इसके बाद शाम होते-होते उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। ये अलग बात है कि उनके विरोधी इसे उनका राजनीतिक ‘स्टंट’ बताते हैं और इस बात का हवाला देते हैं कि उनका कार्यकाल वैसे भी आठ महीने के बाद खत्म होने वाला था।
एक और अहम बात यह कि वर्तमान में बसपा के पास केवल 19 विधायक हैं, ऐसे में अगली बार उनका अपने बूते राज्यसभा में आना तक संभव नहीं। इसके लिए उन्हें बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में महागबंधन-प्रयोग की आवश्यकता होगी। कहने की जरूरत नहीं कि मायावती अब अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं, जो एसी कमरे में बैठकर कतई नहीं लड़ी जा सकती। राजनीति के जानकार मानते हैं कि जिस दिन भाजपा ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था, उसी दिन साफ हो गया था कि मायावती जल्द ही जवाबी कदम उठाएंगी क्योंकि यह उनके वोटबैंक में सेंध लगाने की भाजपा की बड़ी कोशिश थी। बस मायावती को सही वक्त और माकूल मुद्दे की तलाश थी, जो शायद उन्हें मिल गया है।
वैसे मायावती के इस्तीफे को नैतिक समर्थन देने वाले भी कम नहीं। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने तो तत्काल यहां तक कहा कि मायवती चाहेंगी तो हम बिहार से उन्हें दोबारा राज्यसभा भेजेंगे। उनके इस प्रस्ताव में भावी राजनीति के बीज आसानी से देखे जा सकते हैं।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप