बिहार की राजनीति का मेलोड्रामा अपने चरम पर है। सिर पर नीतीश कैबिनेट से बर्खास्तगी की तलवार झेल रहे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के सुरक्षाकर्मियों और पत्रकारों के बीच बुधवार को सचिवालय के बाहर झड़प हुई। इसको लेकर दोनों पक्ष एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं। दोष चाहे जिसका भी हो, ये इस बात की बानगी तो है ही कि बिहार की राजनीति इन दिनों असहज और अप्रिय स्थिति से गुजर रही है।
इस असहज और अप्रिय स्थिति की शुरुआत तो तब ही हो गई थी, जब आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण पटना से दिल्ली तक जांच एजेंसियों का शिकंजा कसता जा रहा था। कहने की जरूरत नहीं कि राजद महागठबंधन का सबसे बड़ा दल है और ऐसे में उसके मुखिया का सपरिवार इस तरह की मुश्किलों में घिर जाना पूरे राजनीतिक परिदृश्य पर प्रभाव डालता। स्थिति तब और बिगड़ गई जब सीबीआई ने लालू के छोटे बेटे और सरकार में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव पर केस दर्ज किया। इसके बाद तेजस्वी के इस्तीफा देने, न देने की स्थिति में नीतीश द्वारा उन्हें कैबिनेट से बाहर किए जाने और कुल मिलाकर सरकार के भविष्य को लेकर कयासों का दौर चल पड़ा।
गौरतलब है कि मंगलवार को अपनी पार्टी की अहम बैठक के बाद नीतीश ने गेंद लालू के पाले में डालते हुए कहा था कि ये उनका और उनकी पार्टी का मामला है, इसीलिए इस पर वो स्वयं निर्णय लें। पर आरजेडी को उनकी आत्ममंथन की सलाह अच्छी न लगी और उधर से बिना किसी देरी के जवाब भी आ गया कि तेजस्वी किसी सूरत में इस्तीफा नहीं देंगे।
ऐसे में नीतीश की छवि और उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए इस बात की संभावना जताई जा रही है कि लालू द्वारा इस समस्या का ‘समाधान’ नहीं निकाले जाने पर वो कोई कड़ा कदम उठा सकते हैं। उन्होंने अपनी पार्टी की बैठक में स्पष्ट संकेत किया था कि भ्रष्टाचार के मामले में वो अपनी जीरो टॉलरेंस की नीति से कोई समझौता नहीं करेंगे। उन्होंने कहा था कि जिन पर आरोप लग रहे हैं उन्हें तथ्यों के साथ जनता के बीच जाना चाहिए। साथ में यह जोड़ना भी नहीं भूले कि उनकी पार्टी के नेताओं पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
बहरहाल, इस सारी रस्साकशी में एक बात मन को मथे जा रही है कि क्या आज की राजनीति में नैतिकता, मर्यादा और शुचिता जैसे शब्दों का कोई अर्थ नहीं रह गया है? क्या इन शब्दों में सुविधानुसार अपना अर्थ भरा जा सकता है? अगर नहीं, तो लालू सकारात्मक दिशा में क्यों नहीं सोच पा रहे? अगर उनके कहे मुताबिक वे और उनका परिवार निर्दोष हैं तो फिर सांच को आंच क्या? सच जो भी है, जहां भी है, आज नहीं तो कल सामने आना ही है। ऐसे में उसके रास्ते सीना तानकर खड़ा होने से क्या फायदा? सच तो अपना रास्ता बदलने से रहा। हां, असहज और अप्रिय स्थिति लम्बी जरूर खिंच जाएगी।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप