कालजयी कवि बाबा नागार्जुन (30 जून 1911 – 5 नवंबर 1998) की जयंती पर 1969 में लिखी उनकी ‘मंत्र कविता’ जो 48 साल बाद भी उतनी ही मारक, उतनी ही सटीक, उतनी ही प्रासंगिक है। राजनीतिक व्यंग्य की दूसरी ऐसी बानगी हो तो बताएं। मंत्र शैली का इतना रचनात्मक और रोओं को झन्ना देने वाला उपयोग केवल बाबा के बूते की बात थी। कविता के अंत तक आप तय नहीं कर पाते कि हंसें या रोएं। या फिर चुप रहकर नसों की सनसनाहट सुनें। या बस चीख पड़ें कि जबड़े में अटक गई-सी चीज बाहर निकल आए।
ओं शब्द ही ब्रह्म है
ओं शब्द और शब्द और शब्द और शब्द
ओं प्रणव, ओं नाद, ओं मुद्राएँ
ओं वक्तव्य, ओं उदगार, ओं घोषणाएँ
ओं भाषण …
ओं प्रवचन …
ओं हुंकार, ओं फटकार, ओं शीत्कार
ओं फुसफुस, ओं फुत्कार, ओं चित्कार
ओं आस्फालन, ओं इंगित, ओं इशारे
ओं नारे और नारे और नारे और नारे
ओं सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ
ओं कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं
ओं पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग
ओं नमक-तेल-हल्दी-जीरा-हींग
ओं मूस की लेंड़ी, कनेर के पात
ओं डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात
ओं कोयला-इस्पात-पेट्रोल
ओं हमी हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल
ओं इदमन्नं, इमा आप:, इदमाज्यम, इदं हवि
ओं यजमान, ओं पुरोहित, ओं राजा, ओं कवि :
ओं क्रांति: क्रांति: क्रांति: सर्वग्वं क्रांति:
ओं शांति: शांति: शांति: सर्वग्वं शांति:
ओं भ्रांति: भ्रांति: भ्रांति: सर्वग्वं भ्रांति:
ओं बचाओ बचाओ बचाओ बचाओ
ओं हटाओ हटाओ हटाओ हटाओ
ओं घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ
ओं निभाओ निभाओ निभाओ निभाओ
ओं दलों में एक दल अपना दल, ओं
ओं अंगीकरण, शुद्धीकरण, राष्ट्रीकरण
ओं मुष्टीकरण, तुष्टीकरण, पुष्टीकरण
ओं एतराज़, आक्षेप, अनुशासन
ओं गद्दी पर आजन्म वज्रासन
ओं ट्रिब्युनल ओं आश्वासन
ओं गुट निरपेक्ष सत्तासापेक्ष जोड़तोड़
ओं छल-छंद, ओं मिथ्या, ओं होड़महोड़
ओं बकवास, ओं उद्घाटन
ओं मारण-मोहन-उच्चाटन
ओं काली काली काली महाकाली महाकाली
ओं मार मार मार, वार न जाए खाली
ओं अपनी खुशहाली
ओं दुश्मनों की पामाली
ओं मार, मार, मार, मार, मार, मार, मार
ओं अपोजिशन के मुंड बनें तेरे गले का हार
ओं ऐं ह्रीं क्लीं हूं आड्.
ओं हम चबाएंगे तिलक और गाँधी की टाँग
ओं बूढे की आँख, छोकरी का काजल
ओं तुलसीदल, बिल्वपत्र, चंदन, रोली, अक्षत, गंगाजल
ओं शेर के दाँत, भालू के नाखून, मरकत का फोता
ओं हमेशा हमेशा हमेशा करेगा राज मेरा पोता
ओं छू: छू: फू: फू: फट फिट फुट
ओं शत्रुओं की छाती पर लोहा कुट
ओं भैरो, भैरो, भैरो, ओं बजरंगबली
ओं बन्दूक का टोटा, पिस्तौल की नली
ओं डालर, ओं रूबल, ओं पाउंड
ओं साउंड, ओं साउंड, ओं साउंड
ओम् ओम् ओम्
ओम् धरती, धरती, धरती, व्योम् व्योम् व्योम्
ओं अष्टधातुओं की ईंटों के भट्ठे
ओं महामहिम, महामहो, उल्लू के पट्ठे
ओं दुर्गा दुर्गा तारा तारा तारा
ओं इसी पेट के अदंर समा जाए सर्वहारा
हरि: ओं तत्सत् हरि: ओं तत्सत्
[बाबा नागार्जुन की कविता]