मवेशी बाजार के नियमन को लेकर जोड़े गए नए नियम के तहत पशु मेलों में मवेशियों की खरीद-फरोख्त उन्हें मारने के लिए नहीं की जा सकती। सिर्फ कृषि उद्देश्य के लिए ही पशुओं को बाजार में लाया जा सकता है, वह भी लिखित गारंटी के साथ। मवेशियों में गाय, बछड़े, सांड और ऊंट को भी शामिल किया गया है। सरकार का कहना है कि मवेशियों की खरीद और पशु बाजारों को रेगुलेट करने के नए नियमों का एक विशिष्ट लक्ष्य है।
पर्यावरण मंत्रालय के इस नए आदेश की राजनीतिक दलों में, खासकर दक्षिण भारत में कड़ी आलोचना हो रही है। आरोप है कि इस आदेश से करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाला सेक्टर तबाह हो जाएगा। एक आकलन के मुताबिक, डेयरी फार्म की 40 फीसदी कमाई अनुत्पादक गायों की खरीद से आती है। अगर इन गायों के लिए बाजार ही नहीं होगा, तो डेयरी किसानों का उत्पादन-चक्र ठप हो जाएगा।
ऐसे समय में, जब यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका जैसे देश दूध पाउडर व अन्य दूध उत्पादों को बड़े पैमाने पर भारतीय बाजार में खपा रहे हैं और आगे भी खपाने को तैयार बैठे हैं, भारत के डेयरी किसानों या कोऑपरेटिव को अपने हाल पर छोड़ देना, समझ में नहीं आता। तो क्या सरकार विदेशी कंपनियों के लिए जगह बना रही है?
बोल डेस्क [डायचे वेले में शिवप्रसाद जोशी]