प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को असम के लोगों को दोहरी खुशी दी। एक तो उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक लोहित नदी पर बने देश के सबसे बड़े पुल का लोकार्पण किया। वहीं दूसरी ओर असम की संस्कृति के प्रतीक बन चुके सदिया के बेटे भूपेन हजारिका के नाम पर पुल का नाम रखने का ऐलान किया। 2 हजार 56 करोड़ की लागत से बने इस पुल की लंबाई 9.15 किलोमीटर है, जो कि असम के सदिया को अरुणाचल के ढोला से जोड़ता है।
कहने की जरूरत नहीं कि आर्थिक व सामरिक लिहाज से यह पुल बेहद महत्वपूर्ण है। इस पुल के बन जाने से असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच की दूरी तय करने में पहले से 4 घंटे कम लगेंगे। केन्द्र में तीन साल पूरा करने के बाद देश को, विशेषकर पूर्वोत्तर को मोदी इससे बड़ा तोहफा नहीं दे सकते थे। इस तोहफे की अहमियत इसलिए और बढ़ जाती है कि इसका नाम उस शख्स के नाम पर रखा गया है जिसका पूरा व्यक्तित्व ही सेतु था, पूर्वोत्तर और पूरे भारत के बीच संस्कृति और संस्कार का, संगीत और साधना का, साहित्य और सिनेमा का सेतु।
पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित डॉ. भूपेन हजारिका का जन्म 8 सितंबर 1926 को असम के तिनसुकिया जिले के सदिया में हुआ था। वे एक महान संगीतकार, अप्रतिम गायक, उत्कृष्ट कवि, लाजवाब गीतकार और अत्यंत सफल फिल्म-निर्माता रहे। वे खुद अपने गीत लिखते, कंपोज करते और फिर उसे गाते थे। गीत-संगीत की दुनिया में उन्होंने ऐसी छाप छोड़ी कि उनके नाम भर से असम का सीना चौड़ा हो जाता है। सरस्वती के इस वरदपुत्र की प्रतिभा को असम ही नहीं, देश और दुनिया सलाम करती है।
भूपेन हजारिका को लोग प्यार और सम्मान से भूपेन दा बुलाते हैं। उनके पिता का नाम नीलकांत और मां का नाम शांतिप्रिया था। दस भाई-बहनों में सबसे बड़े भूपेन दा का संगीत के प्रति लगाव अपनी मां के कारण हुआ। मां शांतिप्रिया ने उन्हें पारंपरिक असमिया संगीत की शिक्षा बचपन में ही देनी शुरू कर दी थी। नैसर्गिक प्रतिभा के धनी भूपेन दा ने अपना पहला गीत बहुत छोटी उम्र में लिखा और 10 साल की उम्र में उसे गाया था। 12 साल की उम्र में उन्होंने असम की दूसरी फिल्म ‘इंद्रमालती’ के लिए काम किया। 13 साल की उम्र में उन्होंने तेजपुर से मैट्रिक की परीक्षा पास की। आगे की पढ़ाई के लिए वे गुवाहाटी गए। 1942 में वहां के कॉटन कॉलेज से उन्होंने 12वीं की पढ़ाई की और 1946 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पॉलिटिकल साइंस में एमए किया। इसके बाद न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी से उन्होंने पीएचडी की डिग्री हासिल की।
दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम सांस्कृतिक दूतों में शुमार डॉ. भूपेन हजारिका को 1975 में सर्वोत्कृष्ट क्षेत्रीय फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, 1992 में सिनेमा जगत का सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के सम्मान, 2009 में असोम रत्न व संगीत नाटक अकादमी अवार्ड और 2011 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। असमिया के साथ-साथ बंगला, हिन्दी समेत कई अन्य भाषाओं को भी उन्होंने अपनी अविरल प्रतिभा से सींचा। अपने बोलते शब्दों और जादुई आवाज से उन्होंने करोड़ों दिलों को छुआ। उनका असर सचमुच देश और काल की सीमाओं सें परे था। ‘दिल हूम-हूम करे’ और ‘ओ गंगा तुम बहती हो क्यों’ जैसे गीत भला किसकी नसों को नहीं झकझोर देंगे। ऐसे भूपेन दा के नाम पर देश के सबसे बड़े पुल का नाम रख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने सचमुच सराहनीय कार्य किया है। इसके लिए उनका हृदय से साधुवाद।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप