यह निहायत अफसोसनाक है कि एक के बाद दूसरी हुकूमतों ने हमारी तारीखी धरोहरों को अब तक कौमी खजाना नहीं माना, ताकि उनकी मुनासिब देखभाल हो पाती। इनकी तरफ हमारी सरकारों की बेरुखी का क्या आलम है, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोहनजोदाड़ो के खंडहरों की हिफाजत करने की बजाय सिंध हुकूमत ने कुछ साल पहले उस स्थल के सार्वजनिक इस्तेमाल की इजाजत दे दी थी। यहां तक कि एक लेजर शो के लिए वहां चबूतरा तक बना दिया गया था। मोहनजोदाड़ो को चारों तरफ से, यानि कुदरती और इंसानी कवायदों से नुकसान पहुंच रहा है। इसे देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने यह चेतावनी दी है कि अगर इसके संरक्षण की योजना को फौरन अमलीजामा नहीं पहनाया गया, तो यह बर्बाद हो सकता है।
यह पहली बार नहीं है, जब मोहनजोदाड़ो की तरफ हुकूमत की बेपरवाही पर उंगली उठी है। फिर लंबे वक्त से जारी वित्तीय विवादों ने भी 5,000 साल पुरानी इस धरोहर को बदतर हालात में पहुंचाया है। दशकों से बढ़ते जल-स्तर, नमी और खारेपन से इसे नुकसान पहुंच रहा है, और इस बाबत अब फौरन कदम उठाए जाने की दरकार है। जैसा कि वजीर-ए-आला ने इस साल की शुरुआत में वादा किया था, सिंध हुकूमत को तुरंत वह रकम मुहैया करानी चाहिए, जो इसके इफाजती काम के लिए आवंटित की गई थी। साल 1980 में ही यूनेस्को ने मोहनजोदाड़ो को अंतर्राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा दे दिया था। इसका वास्तु-कौशल सिंधु घाटी सभ्यता के अध्ययनकर्ताओं के लिए काफी अहमियत रखता है। इस नगर सभ्यता के जटिल जल-प्रबंधन और कचरा-प्रबंधन को समझने के लिए जरूरी है कि इसके उन इलाकों की खुदाई कराई जाए, जो अब तक अछूते हैं, मगर संरक्षण योजना के बगैर उनकी खुदाई नुकसान का जोखिम और बढ़ा देगी। इसीलिए कुछ आर्कियोलॉजिस्ट कहते हैं कि बेहतर है कि उनकी खुदाई न की जाए। अपने प्राचीन इतिहास को लेकर सरकार में जो गौरवहीनता दिखती है, उसे देखते हुए बहुत सारे लोग उन आर्कियोलॉजिस्ट की राय से ही इत्तिफाक रखेंगे।
बोल डेस्क [‘द डॉन’, पाकिस्तान]