पिछले तीन साल में प्रधानमंत्री ने कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है, अलबत्ता एक बार कुछ पत्रकारों को ‘सेल्फी विद पीएम’ के लिए जरूर बुलाया गया। अपनी पसंद के दो विदेशी चैनलों और इक्का-दुक्का देसी मीडिया संस्थानों को उन्होंने इंटरव्यू दिया, जो एकालाप की ही तरह थे। प्रधानमंत्री ने अपनी विदेश यात्राओं में पत्रकारों को ले जाना बंद कर दिया है, जो एक स्वागत योग्य कदम है। जिसे कवर स्टोरी करनी हो, वह अपने खर्च पर जाए और अपना काम करे, लेकिन पत्रकारों को सवाल पूछने का कोई मौका नहीं देना, स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी किसी तरह से नहीं माना जा सकता। संसद में सवालों के जवाब देने के मामले में भी नरेन्द्र मोदी का रिकार्ड अच्छा नहीं रहा है। वह जवाब देने की जगह भाषण देने में ज्यादा सहज महसूस करते हैं। उन्हें ‘मन की बात’ करने और राजनीतिक सभाओं में बोलने में आनंद आता है, जहां सवाल न पूछे जाएं, टोका-टाकी न हो। दुनिया के हर सुचारू लोकतंत्र में पीएम या सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति से उम्मीद की जाती है कि वह डेमोक्रेसी की अनिवार्य शर्त फ्री-प्रेस और संसद की छानबीन के रास्ते बंद नहीं करेगा।… मोदी ही नहीं, टीवी, रेडियो और होर्डिंग्स पर छाए रहने वाले सभी नेताओं को समझना चाहिए कि लोकतंत्र के हित में उन्हें दोतरफा संवाद करना होगा।
बोल डेस्क [बीबीसी में राजेश प्रियदर्शी]