किसी भी मुल्क में जम्हूरियत को जिन्दा रहने के लिए एक आज़ाद प्रेस की जरूरत होती है। और बांग्लादेश में इसकी जरूरत इसलिए बड़ी शिद्दत से महसूस की जा रही है, क्योंकि ‘रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर’ संस्था के मुताबिक, यहां प्रेस को प्रतिबंधों की जंजीर में बांध दिया गया है और इसकी आज़ादी को बुरी तरह कुचला जा रहा है। बांग्लादेश में जम्हूरियत मजबूत बन सके, इसके लिए हमें यहां प्रेस की आज़ादी सुनिश्चित करनी ही होगी। बावजूद इसके परेशान करने वाली बात यह है कि यहां कई तरह के ऐसे कानून लादे जा रहे हैं, जो आने वाले दिनों में प्रेस की आज़ादी को गंभीर मुश्किलों में डाल सकते हैं। यह हमारे कर्ता-धर्ताओं की ओछी सोच को बताता है। मसलन, यह जानते हुए भी कि प्रेस की आज़ादी और लोकतंत्र एक-दूसरे के लिए जीवनदायी हैं और एक खुदमुख्तार समाज में प्रेस की काफी अहम भूमिका होती है, हम राजद्रोह, संशोधित सूचना संचार प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 57 सहित तमाम कानूनों का कथित दुरुपयोग करते हैं। इन कानूनों से किसी भी किस्म के विरोध के स्वर दबाए जा रहे हैं। यह तरीका न सिर्फ प्रेस की आज़ादी के लिए, बल्कि पूरी जम्हूरियत के लिए खतरनाक है।
यह सच है कि समाज में प्रेस को ‘वाचडॉग’ यानी निगाह रखने वाले एक तंत्र का रुतबा हासिल है, लिहाजा हुकूमत और इसके बीच आमतौर पर तनाव ही बना रहता है। मगर हुकूमत के लिए भी यह पता करने का कि मुल्क में क्या हो रहा है और उसकी व्यवस्था किस तरह काम कर रही है, आज़ाद प्रेस के अलावा कोई दूसरा माध्यम नहीं है। लिहाजा यह कहना भी गलत नहीं है कि एक आज़ाद प्रेस का होना खुद हुकूमत के हित में है। ऐसे में, हम यही उम्मीद करते हैं कि हमारी मौजूदा हुकूमत और भविष्य की तमाम जम्हूरी सरकारें इस बात को समझेंगी और पहचानेंगी भी। हमारी यही गुजारिश है कि मुल्क में प्रेस को बिना किसी रोकटोक के काम करने की आज़ादी दी जाए, तभी यह हमारी जम्हूरियत को सुरक्षित बनाने की अपनी जवाबदेही निभा सकेगा।
बोल डेस्क [‘द डेली स्टार’, बांग्लादेश]