अपने खोए गौरव को पाने की राह पर है बिहार। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सत्प्रयासों से प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को नया जीवन मिला और अब वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विक्रमाशिला विश्वविद्यालय के पुनरुत्थान का बीड़ा उठाया है। जी हां, आठवीं-नौवीं सदी के इस गौरवशाली विश्वविद्यालय का भग्नावशेष देखने सोमवार को बिहार के भागलपुर आए महामहिम ने कहा कि विक्रमशिला में ऊंचा से ऊंचा स्तरीय विश्वविद्यालय बनना चाहिए। ऐसी धरोहर को केवल म्यूजियम का शो पीस बनाने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात करेंगे।
विक्रमशिला को लेकर महामहिम की उत्सुकता और कौतूहल को शब्दों में बयां करना मुश्किल है। विक्रमशिला महाविहार के खुदाई स्थल और म्यूजियम को विभोर होकर लगतार 40 मिनट तक उहोंने पैदल घूम-घूम कर देखा और एक-एक चीज की बारीकी से जानकारी ली। महाविहार घूमने के बाद पुरातत्व विभाग के आगंतुक पुस्तिका में उन्होंने अपने हाथों से लिखा, “हैप्पी टू हैव विजिटेड दी विक्रमशिला यूनिवर्सिटी साईट, मेय इट सून रिगेन इट्स ग्लोरी।” जाहिर है कि जहां आने की ललक उन्हें छात्रजीवन से रही हो, वहां सचमुच आकर उनकी खुशी का पहले ही ठिकाना नहीं था। ऊपर से अपने स्वागत में आई हजारों की भीड़। उनका विह्वल होना स्वाभाविक ही था। उन्होंने कहा भी कि इतनी गर्मी में लोग मेरा स्वागत करने के लिए आएंगे, इसका मुझे कतई अंदाजा नहीं था। उपस्थित जनसमूह को उन्होंने पूरे 8 मिनट संबोधित किया और विक्रमशिला के गौरव को वापस हासिल कराने का भरोसा दिलाया।
पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने राष्ट्रपति की जिज्ञासा देखते हुए यहां के बारे में कई बातें संक्षेप में बताई। पुरातन विक्रमशिला विश्वविद्यालय भागलपुर के कहलगांव के अंतीचक में है। इसके इतिहास की जानकारी सन् 70 के दशक में खुदाई के दौरान मिली थी। यह कभी पूरे भारत में शिक्षा के प्रमख केंद्रों में से एक था। तीसरी सदी से तक्षशिला, चौथी सदी से नालंदा और आठवीं-नवीं सदी से इसी विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने लोगों का मार्गदर्शन किया। शिक्षा, शोध और तंत्र को प्रोत्साहन दिया। यहां पढ़ने के लिए चीन, यूनान और मिस्र से छात्र, शिक्षक व शोधकर्ता आते थे। इसकी स्थापना आठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पाल वंश के शासक धर्मपाल ने की थी। यह महाविहार धर्म और अध्यात्म की ऊंचाई पर तकरीबन चार शताब्दी तक खास अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र के रूप में जाना गया।
विक्रशिला विश्वविद्यालय का जिक्र बौद्ध ग्रंथों में प्रमुखता से है और इस ऐतिहासिक स्थल को तिब्बती इतिहासकार भी मान्यता देते हैं। इसे विश्व भर में ख्याति दिलाने में आचार्य ज्ञान दीपंकर अतीश का नाम सबसे ऊपर माना जाता है। गौरतलब है कि समकालीन व पूर्ववर्ती बौद्ध महाविहार की तुलना में विक्रमशिला तंत्र-मंत्र के पठन-पाठन की वजह से महत्वपूर्ण माना गया और बौद्ध भिक्षु आज भी अपनी साधना करने यहां आते हैं। फिर भी यह नालंदा की तरह विकसित नहीं हो पाया।
लेकिन अब तेज धूप में और वह भी बगैर छाते के 40 मिनट तक विक्रमशिला के भग्नावशेष को निहारते और इसके बारे में करीब से जानने की ललक में सुरक्षा अधिकारी के इशारा करने तक मुख्य स्तूप की 15 सीढ़ियां चढ़ जाते राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को देख ऐसा लगता है कि इसके दिन सचमुच फिरने वाले हैं। और फिरे भी क्यों न, जब एक तरफ देश के प्रथम नागरिक की इतनी प्रबल अनुशंसा हो और दूसरी तरफ केन्द्र में नरेन्द्र मोदी और राज्य में नीतीश कुमार जैसे सबल, सजग, सक्षम और सक्रिय प्रहरी हों!
‘बोल बिहार के लिए डॉ. ए. दीप’