सड़ांध मारती राजनीति के इस दौर में अवतार सिंह संधू ‘पाश’ की कविताएं दर्दनाशक मरहम की तरह काम करती है। उन्हें पढ़ते हुए एक सवाल मन में घुमड़ता है कि गर आज पाश जिन्दा होते, तो इस व्यवस्था पर उनकी क्या प्रतिक्रिया होती? जेल में बंद उम्मीदवारों की जीत पर, या इरोम शर्मिला चानू की शर्मनाक हार पर पाश क्या कहते? क्या उनकी कविताओं का सुर बदल जाता या इस वक्त भी वह अपना रोष जताने के लिए बोल देते कि जा पहले तू इस काबिल होकर आ, अभी तो मेरी हर शिकायत से तेरा कद बहुत छोटा है…। पाश की कविताएं बार-बार यह यकीन दिलाती हैं कि वह छद्म व्यक्तित्व वाले शख्स नहीं थे। नतीजतन, उनकी कविता आज और ज्यादा मारक होती। उनके शब्दों में और पैनापन होता, उनकी अभिव्यक्ति और तीखी होती।… जब विरोध के स्वर को देशद्रोही बताया जा रहा हो, जब आपकी हर गतिविधि को राष्ट्र-सुरक्षा के नाम पर संदिग्ध करार दिया जा रहा हो, तब पाश की यह आवाज़ गूंजने लगती है –
यदि देश की सुरक्षा यही होती है/ कि बिना जमीर होना ज़िन्दगी की शर्त बन जाए/ आंख की पुतली में हां के सिवाय कोई भी शब्द/ अश्लील हो/ और मन/ बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहे/ तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है।
बोल डेस्क [‘सत्याग्रह’ में अनुराग अन्वेषी से साभार]