प्रिय महात्माजी,
आपने आज सुबह ही हमारे कार्य के विश्वभारती-केन्द्र का सिंहावलोकन किया है। मैं नहीं जानता कि आपने इसकी मर्यादा का क्या अंदाज लगाया है। आप जानते हैं कि यद्यपि अपने वर्तमान रूप में यह संस्था राष्ट्रीय है, तथापि अंत:भावना की दृष्टि से यह एक सार्वदेशिक-अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है और अपने साधनों के अनुसार भरसक शेष जगत् को भारत की संस्कृति का आतिथ्य प्रदान करती है। एक बड़े गाढ़ अवसर पर आपने इसे टूटने से बचाया और अपने पैर पर खड़े होने में इसकी सहायता की, आपके इस मित्रतापूर्ण कार्य के लिए हम आपके सदा आभारी हैं। और अब शान्ति-निकेतन से विदा होने से पहले मैं आपसे जोरदार अपील करता हूं कि यदि आप इसे एक राष्ट्रीय संपत्ति समझते हैं, तो इस संस्था को अपने सरक्षण में लेकर इसे स्थायित्व प्रदान करें। विश्वभारती उस नौका के समान है जो मेरे जीवन के सर्वोत्तम रत्नों से भरी हुई है और मुझे आशा है कि अपनी रक्षा के लिए अपने देशवासियों से यह विशेष देखरेख पाने का दावा कर सकती है।
प्रेमपूर्वक
रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(03 मार्च 1940 को प्रकाशित गांधीजी के आलेख में संदर्भित पत्र)
बोल डेस्क [सौजन्य ‘हिन्दुस्तान’]