2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के लगभग बीचोंबीच हुए पांच राज्यों के चुनाव जनमत सर्वेक्षण थे – मोदी के अब तक के कामकाज और मतदाताओं के दो साल बाद के संभावित मिजाज को लेकर। साथ ही ये चुनाव मोदी के लिए 2019 में चुनौती बन सकने वाले कुछ चेहरों – राहुल गांधी, अखिलेश यादव और अरविन्द केजरीवाल – के लिए बड़ी अग्निपरीक्षा भी थे। कहने की जरूरत नहीं कि पंजाब में दावों के उलट महज 20 सीटें मिलने और गोवा में खाता तक न खोल पाने के कारण केजरीवाल और यूपी में धाराशायी होने के कारण अखिलेश की आभा कम हुई। बात जहां तक राहुल गांधी की है, तो पंजाब में उनकी पार्टी ने जरूर बड़ी वापसी की और मणिपुर-गोवा में भी कांग्रेस का प्रदर्शन उत्साहजनक रहा, लेकिन कांग्रेसशासित उत्तराखंड और सपा के जूनियर पार्टनर के तौर पर उत्तर प्रदेश में उन्हें जैसी भीषण हार मिली, उससे जश्न मनाने की स्थिति में वे भी नहीं। हां, इन चुनावों मे बिना शरीक हुए और बिना एक भी सीट पर लड़े जिस एक व्यक्ति का कद बढ़ा, वे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं।
आप पूछेंगे कि ऐसा क्योंकर संभव है? तो जनाब जैसे एक लकीर छोटी करने के लिए उसके आगे बड़ी लकीर खींच दी जाती है, वैसे ही क्या एक लकीर के छोटी हो जाने पर पहले से खींची लकीर बड़ी नहीं हो जाएगी? नीतीश के मामले में यही फार्मूला लागू होता है। 2014 से चल रही मोदी की लहर अगर कहीं रुकी थी तो बिहार और दिल्ली में। दिल्लीवाले केजरीवाल चूंकि इस चुनाव में चूक कर अपने कद का नुकसान कर बैठे हैं, इसलिए बिहार के नीतीश कुमार अब अकेले ‘बंद मुट्ठी लाख की’ कह सकने की स्थिति में हैं। इस तरह यह कहा जा सकता है कि यूपी में जेडीयू के चुनाव न लड़ने का निर्णय उन्होंने देर से सही पर दुररुस्त लिया था। वहीं उनके ‘बड़े भाई’ लालू की स्थिति थोड़ी असहज है क्योंकि उन्होंने पूरे जोरशोर से यूपी अभियान में हिस्सा लिया था और सपा के पक्ष में प्रचार करते हुए अपने भाषणों में मोदी-शाह के लिए अभद्रता की हद तक आग उगली थी।
बहरहाल, यूपी-उत्तराखंड की भव्य जीत पर नीतीश ने जहां मुस्कुराहट के साथ भाजपा को बधाई दी, वहीं लालू ने कहा कि इस जीत के लिए भाजपा को बधाई क्या देना। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने थे, तब भी बधाई नहीं दी, तो अब क्या दें। बकौल लालू, मोदी और उनके विचारों में काफी अंतर है, वे (मोदी) समाज को बांट कर राज करना चाहते हैं। दूसरी ओर नीतीश ने यूपी में भाजपाविरोधी दलों की हार का बकायदा विश्लेषण किया और कहा कि इन दलों की हार की एक बड़ी वजह नोटबंदी का कड़ा विरोध है। नोटबंदी का इतना कड़ा विरोध करने की आवश्यकता नहीं थी। इस फैसले से गरीब लोगों के मन में संतोष का भाव उत्पन्न हुआ था। गरीबों को लग रहा था कि इससे अमीर लोगों को चोट पहुंची है। पर कई पार्टियों ने इस तथ्य को नज़रअंदाज कर दिया।
नीतीश ने यह भी कहा कि पिछड़े वर्गों के बड़े तबके ने यूपी चुनाव में भाजपा को समर्थन दिया। गैर भाजपा दलों ने इन्हें जोड़ने का प्रयास नहीं किया। वैसे भी बिहार की तर्ज पर यूपी में महागठबंधन नहीं हो पाया। उधर लालू ने इन परिणामों के संदर्भ में मायावती के ईवीएम में गड़बड़ी के आरोपों को गंभीर मामला बताया और इसकी जांच की मांग की। लालू ने कहा कि जमीन पर दिखे पब्लिक के रुझान और वोटों के भारी अंतर से संदेह पैदा होता है, इसलिए जांच जरूरी है।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप