पांच राज्यों में चुनाव का शोर थमा नहीं कि देश भर की आंखें एग्जिट पोल पर जा टिकी हैं। हर चैनल अपने सर्वे को सटीक बताने में जुटा है और तमाम दलों के नेता व प्रवक्ता पानी पी-पी कर अपनी सरकार बनने के दावे कर रहे हैं। वैसे सारे सर्वे का निचोड़ निकालें तो उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में कमल खिलने के पूरे आसार हैं, पंजाब में कांग्रेस और आप के बीच कांटे की टक्कर है और उत्तर प्रदेश, जिसके परिणाम से देश का भावी राजनीतिक परिदृश्य आकार लेगा, में असमंजस की स्थिति है।
ये सच है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आती और कुछ सर्वे के मुताबिक सरकार बनाती दिख रही है, लेकिन सरकार बन ही जाएगी ये पूरे विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता। हां, इतना जरूर है कि अगर 11 मार्च को चमत्कार सरीखा कुछ न हो जाए तो स्पष्ट तौर पर भाजपा पहले, सपा-कांग्रेस गठबंधन दूसरे और बसपा तीसरे स्थान पर होगी। आप पूछेंगे सरकार? तो जनाब, ईमानदारी की बात यह है कि इस यक्ष-प्रश्न का जवाब शायद 11 मार्च को भी न मिले और कोई आश्चर्य न कीजिएगा अगर तीसरे पायदान पर रहकर भी सरकार बनाने की कुंजी ‘बहनजी’ के पर्स में आ गिरे। मजे की बात यह कि एग्जिट पोल के सारे नतीजे आ जाएं उससे पहले ही बीबीसी हिन्दी से बात करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बहुमत हासिल न कर पाने की स्थिति में बसपा के साथ गठबंधन का बकायदा इशारा भी कर दिया है।
इन बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच ख़बर ये भी है कि अखिलेश और मायावती के बीच ‘कड़वाहट’ खत्म करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और जेडीयू अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार कोशिश में लगे हैं, ताकि बिहार की तर्ज पर यूपी में भी ‘महागठबंधन’ तैयार हो सके। वैसे इस संभावना पर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव द्वारा किए गए प्रयासों को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। बदले हालात में ये तमाम दल साझे मंच पर आने की जरूरत जान और मान चुके हैं।
दरअसल मुलायम और मायावती के बीच के तल्ख रिश्ते को देखते हुए यूपी में ‘महागठबंधन’ की अटकलों को असंभव माना जा रहा था, लेकिन सपा की कमान अखिलेश के हाथों में आने और राहुल के साथ जोड़ी बनाने के बाद इसकी संभावना टटोली जाने लगी है। जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने इस बाबत बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि उनकी पार्टी भाजपा के खिलाफ बड़ा गठबंधन बनाने के पक्ष में है। साथ में यह भी कि अगर विपक्षी मतों का बिखराव रोका न गया तो भाजपा को रोकना मुश्किल है।
पिछले दिनों दिल्ली के एक कार्यक्रम में नीतीश ने भी कहा था कि नरेन्द्र मोदी के खिलाफ गठबंधन बनाना है तो कांग्रेस को इसकी अगुआई करनी होगी और दूसरे विपक्षी दलों को एक मंच पर आना होगा। गौरतलब है कि नीतीश ने दो दिन पहले ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी मुलाकात की थी और उस दौरान महागठबंधन की संभावना पर भी बात हुई थी।
बहरहाल, अभी 11 मार्च का इंतजार करते हैं। चुनाव-परिणाम के बाद सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा की स्थिति से आगे की दशा-दिशा तय होगी। दिल्ली के बाद पंजाब में पांव जमाने की तैयारी में लगे केजरीवाल के रुख पर भी बहुत कुछ टिका होगा।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप