अज्ञेय युवा थे, जोश से भरे हुए… भगत सिंह की गिरफ्तारी से काफी क्षुब्ध थे। चन्द्रशेखर आज़ाद वाहिद ऐसे शख्स बचे थे, जो जेल के बाहर सक्रिय क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे थे। अज्ञेय पहुंच गए उनके पास। आज़ाद ने पूछा ‘ट्रक चला लेते हो?’ ‘मैं तो कोई भी गाड़ी नहीं चला पाता।‘ ‘एक हफ्ते का टाइम है, ऐसा ट्रक चलाना सीखकर आओ कि अनारकली बाज़ार से हवा की तरह गुजर जाए तुम्हारा ट्रक।’ एक हफ्ते बाद अज्ञेय दुबारा पहुंचे आज़ाद के पास – ‘जनाब ट्रक चलाना तो सीख लिया, पर अनारकली बाजार हमेशा खचाखच भरा होता है, डर है कि कोई नीचे न आ जाए।’ आज़ाद थोड़ी देर खामोश रहे, फिर अज्ञेय के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा – ‘यह फैसला तुम्हारे ऊपर छोड़ रहा हूं कि तुम्हारे साथ ट्रक में जो बैठा है, उसकी ज़िन्दगी ज्यादा कीमती है या जो बाहर सड़क पर है?… भगत सिंह होगा तुम्हारे ट्रक में, उसे तुम निकालोगे अनारकली बाज़ार से, उसकी ज़िन्दगी और मौत का फैसला तुम्हारे हाथ में होगा।’ यह योजना सफल न हो सकी, पर अज्ञेय की बताई यह घटना बहुत कुछ बता जाती है आज़ाद के बारे में। हालांकि कांग्रेस और क्रांतिकारियों में हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा, मगर जैसे ही इलाहाबाद में आज़ाद के मारे जाने की ख़बर फैली, सबसे पहले औरतें बाहर निकलकर आईं, जिनमें सबसे आगे कमला नेहरू थीं।
बोल बिहार [हैदर रिज़वी की फेसबुक वॉल से साभार]