आजादी मिलने के बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू नई सरकार का गठन कर रहे थे। विदेश मंत्रालय में ऐसे लोगों की बहुत कमी थी, जिन्हें राजदूत के पद सौंपे जा सकें। इसलिए पंडित जी सिविल सोसाइटी से योग्य लोगों को राजदूत का पद स्वीकार करने का निमंत्रण दे रहे थे। इस सिलसिले में उन्होंने उत्तर प्रदेश के अवध इलाके की एक रियासत के राजा को बुलाया, जो उनकी तरह इंग्लैंड में पले-बढ़े और लिखे-पढ़े थे।
राजा साहब ने पंडित जी का ऑफर सुनने के बाद विनम्रता से कहा – “पंडित जी, बड़ी मुश्किल से तो मैंने हाथ से खाना खाना सीखा है। अब आप चाहते हैं कि मैं फिर से छुरी-कांटे से खाना खाना शुरू कर दूं?” राजा साहब का यह जवाब सुनकर पंडितजी हंसने लगे और कहा कि ठीक है, आपको कोई ऐसी जिम्मेदारी दी जाएगी, जो देश में ही रहकर पूरी की जा सके।
मुलाकात के बाद चलने से पहले राजा साहब ने पंडित जी से कहा – पंडित जी, आपने डेमोक्रेसी नाम का यह जो पौधा यूरोप से लाकर यहां पर लगाया है, कुछ समय के बाद एक बड़ा झाड़ और झंखाड़ बन जाएगा, जिस पर हम सबको रोना आएगा, अगर 20 साल के अंदर-अंदर पूरे देश को आधुनिक शिक्षा न दे दी गई। राजा साहब की वह बात आज कितनी सच लगती है?
बोल डेस्क [असगर वजाहत की फेसबुक वॉल से साभार]