बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर विपक्षी एकता की जोरदार वकालत की और न केवल कांग्रेस बल्कि लेफ्ट समेत सभी विपक्षी दलों से एक मंच पर आने का आह्वान किया। मौका था वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पुस्तक ‘फियरलेस इन अपोजिशन : पावर एंड अकाउंटेबिलिटी’ के विमोचन का जिसमें मंच पर उनके साथ मौजूद थे माकपा के सीताराम येचुरी, कांग्रेस के कपिल सिब्बल और स्वयं चिदंबरम। वैसे कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत कई बड़ी हस्तियां मौजूद थीं।
नीतीश कुमार ने भाजपा या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लिए बगैर कहा कि एजेंडा वे लोग क्यों तय करें, हमलोग क्यों न करें, राहुल गांधी क्यों न करें। नोटबंदी का समर्थन कर चुके नीतीश ने स्पष्ट किया कि कालेधन के खिलाफ कदम का विरोध नहीं होना चाहिए, लेकिन अब सरकार को बताना होगा कि कितना कालाधन आया और बेनामी संपत्ति पर वह क्या कर रही है।
इधर हाल के दिनों में भाजपा से बढ़ रही तथाकथित नजदीकियों के उलट नीतीश ने उस पर जम कर हमला किया। कटाक्ष की मुद्रा में उन्होंने कहा कि कौन डरेगा इनसे? लोकतंत्र में कोई किसी से नहीं डरता वे (नीतीश) तो आपातकाल में भी नहीं डरे थे। लेकिन वक्त की जरूरत है कि अधिकतम विपक्षी एकता हो। ‘एकता’ और ‘प्रतिबद्धता’ के बीच द्वंद्व न रहे इसलिए उन्होंने कहा कि जब वे राजग में थे तब भी जीएसटी और राष्ट्रपति पद के लिए प्रणव मुखर्जी की उम्मीदवारी के मुद्दे पर भाजपा से अलग राय रखी थी। बहरहाल, माकपा नेता येचुरी ने भी कहा कि विपक्षी एकता न्यूनतम सहमति वाली नीतियों पर होनी चाहिए। सिब्बल ने भी सुर मिलाते हुए कहा कि हमें आगे जाने के लिए नई सहमति और नया रास्ता खोजने की जरूरत है।
बोल डेस्क