पटना के गांधी मैदान में 4 फरवरी को शुरू हुआ 23वां पुस्तक मेला अपने रंग में है। इस मेले की बड़ी खूबी है कि यह हर साल पहले से बड़ा हो जाता है। या यूं कहें कि हर साल यह पटना को और बड़ा कर देता है। इस बार मेले के उद्घाटन कार्यक्रम में इसकी विशिष्ट पहचान को रेखांकित करते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हुए कहा कि 2018 में इसका आयोजन अंतर्राष्ट्रीय स्तर का होना चाहिए। उन्होंने इसमें राज्य सरकार द्वारा पूरे सहयोग का विश्वास भी दिलाया। मुख्यमंत्री ने कहा कि पटना पुस्तक मेले में जितनी किताबें बिकती हैं, उतनी देश के किसी और पुस्तक मेले में नहीं बिकतीं। यह प्रमाण है कि पत्र-पत्रिकाएं और पुस्तकें पढ़ने में बिहारियों की खास दिलचस्पी है और सोशल मीडिया व इंटरनेट के दौर में भी उन्होंने किताबें पढ़ने की रुचि को त्यागा नहीं है।
गौरतलब है कि इस बार गांधी मैदान में देश भर के लगभग 300 प्रकाशकों ने पुस्तकों का संसार सजाया है। इनमें राजकमल, वाणी, प्रभात, अरिहंत जैसे दर्जनों नामचीन प्रकाशक शामिल हैं। बता दें कि इस बार मेले के ‘मेड इन इंडिया’ कलाग्राम में 12 राज्यों के कलाकार विभिन्न लोककलाओं का प्रदर्शन कर रहे हैं, निफ्ट के 120 छात्र-छात्राएं की 144 फुट की पेंटिंग लोगों की उत्सुकता बढ़ा रही है, साथ ही कलाप्रेमियों के लिए पद्मश्री बौआ देवी द्वारा बनाई गई मधुबनी पेंटिंग भी उपलब्ध है। इन सबके अतिरिक्त पुस्तकों के विमोचन, विभिन्न विषयों पर परिचर्चा, अलग-अलग विषयों पर कार्यशाला और नुक्कड़ नाटकों के आयोजन जैसे अनवरत होने वाले कार्यक्रम तो हैं ही।
खास पुस्तकों की बात करें तो चंपारण शताब्दी समारोह को देखते हुए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लिखित और प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘चंपारण में महात्मा गांधी’, वाणी प्रकाशन के स्टॉल पर विश्व पुस्तक मेले में सबसे ज्यादा बिकी पुस्तक ‘पतनशील पत्नियों के नोट्स’ और नीतीश कुमार पर आईं आठ पुस्तकें – ‘अकेला आदमी’, ‘विकसित बिहार की खोज’, ‘नीतीश कुमार और उभरता बिहार’, ‘अकेला राही’ आदि – लोगों का ध्यान खींच रही हैं। चलते-चलते बता दें कि 11 दिवसीय 23वें पुस्तक मेले का थीम ‘कुशल युवा सफल बिहार’ रखा गया है।
बोल डेस्क