बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता व राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया है कि छात्रवृत्ति के 900 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नीतीश सरकार शिक्षकों को वेतन देने में कर रही है। मोदी ने पटना में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आरोप लगाया कि दलितों व पिछड़ों को दी जाने वाली एक लाख रुपये तक की पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति को पहले ही बंद कर चुकी राज्य सरकार ने अब दलित, आदिवासी एवं अतिपिछड़े समुदाय के छात्र-छात्राओं को कक्षा 1 से 10 तक दी जाने वाली प्री मैट्रिक छात्रवृत्ति को भी बंद कर दिया है।
बकौल मोदी, कक्षा 1 से 4 तक के दलित, आदिवासी एवं अति पिछड़े समुदाय के छात्र-छात्राओं को सालाना 800 रुपये, कक्षा 5 और 6 को 1200 रुपये और कक्षा 7 से 10 तक के छात्र-छात्राओं को 1800 रुपये दिये जाते थे, जिसे इस साल से बंद कर दिया गया है। बिहार विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता मोदी का कहना है कि एक ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार दावा कर रहे हैं कि शराबबंदी के बाद राज्य को राजस्व का कोई नुकसान नहीं हुआ है, वहीं दूसरी ओर एक करोड़ से अधिक दलितों, आदिवासियों और अतिपिछड़ों की छात्रवृत्ति बंद की जा रही है।
भाजपा नेता का आरोप है कि पिछले साल विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र राज्य सरकार ने करीब तीन हजार करोड़ रुपये छात्रवृत्ति वितरण पर खर्च किया था, जबकि इस वर्ष बजट प्रावधान होने के बावजूद राशि समर्पित करा दी गई है। क्या ये इन छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है?
राज्यहित को देखते हुए जरूरी है कि बिहार सरकार भाजपा नेता के इन आरोपों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे। अगर ये आरोप सही हैं और सरकार के पास छात्रवृत्ति बंद करने का कोई तार्किक आधार नहीं है तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। खास तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा इस संदर्भ में तत्काल संज्ञान लिया जाना अपेक्षित है।
बोल डेस्क