क्या रविन्द्रनाथ टैगोर और शरतचन्द्र के बिना बांग्ला साहित्य या संस्कृति की कल्पना की जा सकती है? नहीं ना! लेकिन जब मन और मस्तिष्क धर्म की संकीर्ण परिभाषा से जकड़ जाएं तो ये भी संभव है। जी हाँ, अब बांग्लादेश के बच्चे टैगोर और शरत की दुनिया में बिना झांके बड़े होंगे। बांग्लादेश सरकार ने हाल ही में स्कूल में पढ़ाई जाने वाली बांग्ला भाषा की किताबों से रविन्द्रनाथ टैगोर और शरतचन्द्र की कविता और कहानी हटा दी है।
गौरतलब है कि बांग्लादेश के शिक्षा मंत्रालय ने पहली से लेकर आठवीं तक की किताबों में भारी फेरबदल किया है। सरकार ने मदरसे में पढ़ाने वाले शिक्षकों और विद्यार्थियों के एक कट्टर दबाव समूह हिफाजत-ए-इस्लाम की मांग पर यह कदम उठाया है। हिफाजत-ए-इस्लाम लंबे समय से कविता और कहानी के 17 पाठों को हटाने की मांग कर रहा था। इसके पीछे दलील थी कि ये कविता और कहानियां इस्लामविरोधी हैं और इनसे नास्तिक विचारधारा को बढ़ावा मिल रहा है।
हालांकि सरकार के इस कदम का देशव्यापी विरोध भी हो रहा है। सोशल मीडिया पर भी असहमति के स्वर गूंज रहे हैं। पर सरकार ने अपने इस कदम पर अभी कोई सफाई नहीं दी है। हाँ, कट्टरपंथी समूहों ने सरकार के इस कदम पर संतोष जरूर जताया है।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप