खादी ग्राम उद्योग आयोग द्वारा साल 2017 के लिए प्रकाशित कैलेंडर और टेबल डायरी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जगह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर का छपना – चाहे वो मोदी की इजाजत से छपी हो या उनसे बिना पूछे – इस देश के अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों के लिए एक साथ चिन्ता का विषय है। ये विरासत की अवमानना, विचार पर आघात और विवेक का अवमूल्यन है। देश भर में इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। लगभग तमाम दलों ने इसका एक स्वर से विरोध किया है। हालांकि भाजपा कुछ तर्कों के साथ अपने नेता का बचाव जरूर कर रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि इस मामले में वह बैकफुट पर है। बहरहाल, हमारे यहाँ इस पर क्या कहा-सुना जा रहा है, इसके साथ-साथ यह जानना खासा दिलचस्प होगा कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के लोग इस पर अपनी क्या राय रखते हैं। पेश है इस संदर्भ में बीबीसी के लिए लिखा गया वुसतुल्लाह खान का आलेख – ‘गांधी के साथ मोदी की सेल्फ़ी का इंतजार है’…
हबीब जालिब पाकिस्तान के सबसे जाने माने अवामी इंकलाबी शायर थे। उन्होंने पूरी ज़िन्दगी अयूब खान से लेकर भुट्टो और फिर जियाउल हक तक फौजी और सिविलियन तानाशाहों से लड़ते गुजारी। जेल गए और मारें खाईं।
यही हबीब जालिब, मार्च 1993 में शरीफ परिवार के शहर लाहौर में मरे तो उनके बैंक एकाउंट में 150 रुपए भी नहीं थे, उस वक्त नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे।
आज इन्हीं हबीब जालिब के सबसे बड़े भक्त, जियाउल हक के मुंहबोले बेटे, हमारे (पाकिस्तान के) प्रधानमंत्री के छोटे भाई और पंजाब के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ हैं। उनकी हर तकरीर हबीब जालिब के इस शेर पर खत्म होती है – ऐसे दस्तूर को, सुबहे बेनूर को, मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता।
पाकिस्तान का हर राष्ट्रपति भले सिविलियन हो या फौजी, हर प्रधानमंत्री और मंत्री, भले राइट का हो या लेफ्ट का, जब शपथ लेता है तो उस वक्त जिन्ना कैंप और जिन्ना की तरह शेरवानी जरूर पहनता है।
फैज अहमद फैज ने पूरी ज़िन्दगी सोशलिस्ट विचारों के साथ गुजारी लेकिन आज हाफिज सईद और जमाते इस्लामी वाले भी अपने जलसों में फैज साहब की नज्म पढ़ने से नहीं चूकते – कत्लगाहों से चुनकर हमारे अलम, और निकलेंगे उश्शाक के काफिले।
ऐसे में जब सीमा पार से ऐसी ख़बरें आती हैं तब हंसने को जी चाहता है कि खादी और ग्रामोद्योग के कर्मचारी इस बात से खुश नहीं कि उनके कैलेंडर और वेबसाइट पर गांधी जी की जगह मोदी जी क्यों चरखा कात रहे हैं।
क्योंकि मोदी जी का ताल्लुक आरएसएस से है और आरएसएस का गांधी जी और उनके दर्शन से वही ताल्लुक है जो सऊदी अरब का मार्क्सवाद से है।
मगर मुझ जैसों का मानना है कि अगर शाहबाज हबीब जालिब के आशिक हो सकते हैं, हाफिज सईद को फैज साहब पसंद आ सकते हैं, बिल क्लिंटन नेल्सन मंडेला को गुरु मान सकते हैं तो मोदी साब के गांधी स्टाइल में चप्पा चप्पा चरखा चलाने में क्या आपत्ति है?
अब मुझे ये न बताइएगा कि अगर वाकई मोदी को गांधी जी के विचारों से इतना प्यार है तो उन्होंने ओबामा का इस्तकबाल करते हुए एक हजार रुपए की खादी की जगह दस लाख रुपए का सूट क्यों पहना और उस पर गोल्डेन कढ़ाई में अपना नाम सौ बार क्यों लिखवाया।
फिर वही सूट 43 करोड़ रुपए में नीलाम हो कर गिनीज बुक में कैसे आ गया। अगर आ ही गया तो ये 43 करोड़ रुपए गांधीगिरी फैलाने में क्यों इस्तेमाल नहीं हुए।
गांधी जी ने अपनी ज़िन्दगी में 43 करोड़ क्या 43 लाख रुपए भी कभी इकट्ठे नहीं देखे होंगे। ऐसे लोगों से मैं बहुत तंग हूं जो बात-बात में कीड़े निकालते हैं।
मगर हम मोदी जी के साथ हैं। और उम्मीद करते हैं कि जल्द ही वे गांधी जी के साथ ली गई सेल्फी अपने ट्विटर पर डालकर सभी जलने वालों के मुंह पर ताला लगा देंगे।
यस यू कैन डू इट ब्रो। सब बिकता है। फैज हों या जालिब, मंडेला हों या गांधी। जो चाहे खरीद ले और फिर आगे बेच दे।
बोल डेस्क [बीबीसी हिन्दी डॉटकॉम से साभार]