पता नहीं क्यों मनहूस ख़बरें ही अक्सर सच निकलती हैं। ओम पुरी सचमुच नहीं रहे, यकीन नहीं होता। नई पीढ़ी उन्हें ज्यादातर ‘आक्रोश’, ‘शोध’, ‘अर्द्धसत्य’, ‘आघात’, ‘द्रोहकाल’ जैसी यादगार फिल्मों के बेमिसाल अभिनेता के रूप में ही जानती है। कुछ लोग उन्हें ‘तमस’ या हॉलीवुड के कारण भी याद करेंगे, परंतु जिन भाग्यशाली दर्शकों को रंगमंच पर उन्हें प्रत्यक्ष देखने का अवसर मिला है – वे तो उन्हें इब्राहिम अल्काजी के निर्देशन में प्रस्तुत ‘सूर्यमुख’, ‘रजिया सुल्तान’, ‘दांतोन डेथ’, ओम शिवपुरी के ‘तुगलक’, बलराज पंडित के ‘पांचवा सवार’, भानु भारती के ‘द लैसन’ व राम गोपाल बजाज के ‘सूर्यास्तक’ जैसे नाटकों में उनके जीवंत अभिनय के कारण कभी नहीं भुला पाएंगे। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में ओम पुरी नसीरुद्दीन शाह के सहपाठी व घनिष्ठ मित्र थे। मुंबई के संघर्ष के दिनों में दोनों मित्रों ने मिलकर ‘मजमा’ नामक संस्था की स्थापना करके कई नाटक प्रस्तुत किए थे। उनमें से जीपी देशपांडे का अपेक्षाकृत कठिन नाटक ‘उर्ध्वस्त धर्मशाला’ भी एक था। लगभग स्थूल कार्य-व्यापार हीन इस बहस नाटक में ओम पुरी की आवाज़ और भाव-भंगिमाओं के जादू ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस महान अभिनेता और सादगी की मिसाल बने आत्म-सम्मानी मनुष्य को भावभीनी श्रद्धांजलि।
बोल डेस्क [जयदेव तनेजा की फेसबुक वाल से साभार]