सफलता के नए कीर्तिमान रच रही है आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’। नोटबंदी के बाद जबकि आप और हम जरूरी खर्चा भी सोचकर कर रहे हैं तब भी अगर ये फिल्म सुर्खियां और सुर्खियों के साथ पैसा बटोर रही है तो यह अकारण नहीं। खेल की पृष्ठभूमि पर हाल के दिनों में बहुत सारी फिल्में बनी हैं, जिनमें 2016 की ‘सुल्तान’ और ‘एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी’, 2014 की ‘मैरीकॉम’ और 2013 की ‘भाग मिल्खा भाग’ (2013) शामिल हैं, पर ‘दंगल’ इन सबसे अलग है। इस फिल्म को ज्यादा फिल्मी न बनाते हुए निर्देशक नीतेश तिवारी ने इस तरह परदे पर उकेरा है कि हर सीन, हर एक्सप्रेशन, हर डायलॉग आपको रियलिस्टिक लगते हैं। फिल्मी मसाला न होते हुए भी 2 घंटे 50 मिनट की ये फिल्म आपको बांधे रखती है, यह बड़ी बात है।
‘दंगल’ हरियाणा के पहलवान महावीर सिंह फोगाट के जीवन पर आधारित है। एक बेटे के इंतजार में फोगाट की चार बेटियां पैदा हो जाती हैं जबकि उसे बेटा चाहिए। वो अपना सपना अपने बेटे से साकार करना चाहता है, लेकिन सारी कोशिशें कर थक चुके फोगाट को उस समय सपना सच करने का रास्ता मिल जाता है जब उसकी बेटियां अपने दांव-पेंच से एक लड़के को पीट देती हैं। इसके बाद फोगाट अपनी बेटियों गीता और बबीता को कुश्ती के गुर सिखाता है और वे चैम्पियन बनती हैं। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। उसे कई तरह की जलालत और मुसीबत झेलनी पड़ती है इसके लिए, लेकिन वह डटा रहता है।
यह फिल्म आमिर खान के शानदार करियर में मील का एक और पत्थर जोड़ती है। अपने सधे हुए अभिनय से उन्होंने महावीर सिंह फोगाट की भूमिका को जीवंत कर दिया है। उनकी तरह अधेड़ दिखने के लिए आमिर ने अपना वजन बढ़ाया है। उनकी निकली हुई तोंद और बदली हुई बोली और चाल-ढ़ाल को देखकर आप भूल जाएंगे कि आप एक सुपरस्टार को देख रहे हैं। पर खास बात यह कि आमिर इस फिल्म में जितने परफेक्ट हैं, उतना ही परफेक्शन उनकी ‘छोरियों’ ने दिखलाया है। फिल्म में गीता और बबीता के बचपन का रोल जायरा वसीम और सुहानी भटनागर ने किया है और उनके बड़ी होने के बाद की भूमिका फातिमा शना शेख और सान्या मल्होत्रा ने की है। अपने-अपने रोल के लिए इन्होंने कई महीनों की ट्रेनिंग ली है और वो मेहनत दिखती भी है। फोगट की पत्नी की भूमिका में साक्षी तंवर और उनके भतीजे के रूप में अपारशक्ति खुराना ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है।
रिलीज से पहले ‘दंगल’ की तुलना सलमान की सुल्तान से हो रही थी, लेकिन ‘दंगल’ ‘सुल्तान’ से बहुत आगे की फिल्म है। दोनों फिल्में रेसलिंग पर जरूर बनी हैं पर इनमें एक जैसा कुछ भी नहीं। स्टोरी हो या एक्टिंग दोनों में कोई तुलना नहीं है। सुल्तान कुल मिलाकर लव स्टोरी थी, जबकि ‘दंगल’ बाप-बेटी के रिश्ते पर बनी है। ये फिल्म सचमुच बताती है कि “मेडलिस्ट पेड़ पर नहीं उगते, उन्हें बनाना पड़ता है… प्यार से, मेहनत से, लगन से…।” इस फिल्म की यह एक लाइन अपने आप में बहुत कुछ कह जाती है। बाप-बेटी के प्यार, फटकार और तकरार को बहुत करीने और सलीके से दिखाती है।
निर्देशन की बारिकियों से नीतेश तिवारी ने जहाँ ‘दंगल’ में कमाल किया है, वहीं प्रीतम ने फिल्म को भीड़ से अलग संगीत दिया है। गानों के बोल अमिताभ भट्टाचार्य के हैं। ‘हानिकारक बापू’, ‘धाकड़’, ‘गिल्हेरियां’ और अरिजित सिंह का गाया ‘नैना’ – सारे गाने एक पर एक हैं। बड़ी बात यह कि सब अलग-अलग ‘फ्लेवर’ के हैं। कुल मिलाकर नोटबंदी में भी देखने लायक एक यादगार फिल्म है दंगल।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप