पुडुचेरी स्थित मनाकुला विनायगर मंदिर। गणपति के इस अद्भुत मंदिर का इतिहास पुडुचेरी में फ्रांसीसियों के आगमन यानि 1666 से भी पहले का है। गौरतलब है कि शास्त्रों में गणेशजी के 16 रूपों की चर्चा है। इनमें पुडुचेरी के गणपति, जिनका मुख सागर की तरफ है, को भुवनेश्वर गणपति कहा गया है। इन्हें मनाकुला कहे जाने का संदर्भ यह है कि किसी जमाने में यहाँ गणेश की मूर्ति बालू से घिरी हुई थी और तमिल में मनल का मतलब बालू और कुलन का मतलब सरोवर होता है। इस तरह मनाकुला का अर्थ हुआ बालू के सरोवर में स्थित गणेश।
पुडुचेरी में फ्रेंच शासन के दौरान कई बार इस मंदिर को क्षति पहुँचाने की कोशिश की गई। कहा तो यहाँ तक जाता है कि फ्रांस से आए लोगों ने कई बार गणपति की प्रतिमा को समुद्र में डुबो दिया, पर हर बार प्रतिमा अपने स्थान पर वापस आ जाती थी। अतीत में आए अनेक व्यवधानों के बावजूद यह मंदिर आज भी अपनी पूर्ण प्रतिष्ठा के साथ भक्तों की आस्था और आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।
मनाकुला विनायगर मंदिर करीब 8000 वर्गफीट क्षेत्र में बना है। मंदिर की आंतरिक सज्जा स्वर्ण-जड़ित है और गर्भ-गृह की सुंदरता का तो कहना ही क्या। मंदिर में मुख्य गणेश प्रतिमा के अलावा 58 तरह की गणेश मूर्तियां स्थापित की गई हैं। मंदिर के अंदर की दीवारों पर प्रसिद्ध चित्रकारों ने गणेशजी के जीवन से जुड़े दृश्य उकेरे हैं। इनमें उनके जन्म, विवाह आदि के दृश्य हैं। मंदिर में गणेशजी का 10 फीट ऊँचा भव्य रथ भी है, जिसके निर्माण में साढ़े सात किलोग्राम सोने का इस्तेमाल हुआ है। गणेशजी हर साल विजयादशमी के दिन इस रथ पर सवार होकर विहार करते हैं।
बता दें कि प्रत्येक दिन सुबह 5.45 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक और शाम को 4 बजे से रात के 9.30 बजे तक यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है, शुक्रवार को यहाँ विशेष पूजा होती है, रात की रोशनी में मंदिर की शोभा में मानो चार चांद लग जाते हैं और हर साल अगस्त-सितंबर महीने में मनाया जाने वाला ब्रह्मोत्सव यहाँ का मुख्य त्योहार है, जो 24 दिनों तक चलता है। एक बात और, मंदिर के बाहर प्रवेश द्वार पर आपको एक हाथी खड़ा मिलेगा, जो सूढ़ में सिक्का डालने पर आपके सिर पर आशीर्वाद की ‘वर्षा’ करेगा और सिक्के को बगल में बैठे अपने महावत को दे देगा। इस ‘वर्षा’ में भींगना बिल्कुल न भूलें।
‘बोल बिहार’ के लिए रूपम भारती