जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी नई टीम की घोषणा कर दी। अपनी इस टीम में अपने खास लोगों के साथ-साथ पर्याप्त ‘विवेक’ से काम लेते हुए उन्होंने पूर्व अध्यक्ष शरद यादव के करीबी लोगों को भी बरकरार रखा है। मूलत: बिहार में अपना आधार रखने वाली जेडीयू की इस नई टीम के प्रधान महासचिव और सात में से चार महासचिव उत्तर प्रदेश के मूल निवासी हैं, जो चौंकाता जरूर है, पर वहाँ होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र इसका ‘औचित्य’ भी समझ में आता है। हालांकि पार्टी को इसका कितना लाभ मिलेगा, ये आने वाला वक्त ही बताएगा।
बहरहाल, लम्बे इन्तजार के बाद बनाई गई पार्टी पदाधिकारियों की नई टीम में एक प्रधान महासचिव, एक संगठन महासचिव, सात राष्ट्रीय महासचिव, छह सचिव और एक कोषाध्यक्ष को जगह दी गई है। राज्यसभा के पूर्व सांसद के.सी. त्यागी को फिर से पार्टी का प्रधान महासचिव बनाया गया है। राज्यसभा सांसद रामचंद्र प्रसाद सिंह को संगठन महासचिव की जिम्मेदारी दी गई है। वहीं, हरिवंश नारायण सिंह, पूर्व सांसद पवन कुमार वर्मा, विधानसभा में जेडीयू के उपनेता श्याम रजक, जॉर्ज वर्गीज (केरल), अरुण कुमार श्रीवास्तव, मौलाना गुलाम रसूल बलियावी और जावेद रज़ा महासचिव बनाए गए हैं।
राष्ट्रीय सचिव के रूप में विधायक रामसेवक सिंह, श्रेयांश कुमार (केरल), अफाक अहमद (गया), रविन्द्र सिंह (पटना), वीरेन्द्र सिंह विधूड़ी (दिल्ली) और विद्यासागर निषाद को जगह दी गई है, जबकि लोकसभा सांसद कौशलेन्द्र कुमार को एक बार फिर से कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है।
नीतीश की नई टीम को लेकर खास तौर पर चार बातें रेखांकित करने लायक हैं। पहली, प्रधान महासचिव त्यागी और सात महासचिवों में से चार – हरिवंश, पवन, अरुण और जावेद – उत्तर प्रदेश के मूल निवासी हैं। वहाँ के विधानसभा चुनाव में ये सभी नीतीश के लिए क्या और कितना कर पाते हैं, इस पर निगाह रहेगी। दूसरी, त्यागी, जावेद जैसे लोग शरद की कोर टीम का हिस्सा रहे हैं। इन्हें नई टीम में बनाए रखना बताता है कि पार्टी में शरद का ‘सांकेतिक’ महत्व निकट भविष्य में भी बना रहेगा। तीसरी, रामचंद्र प्रसाद सिंह, हरिवंश, पवन जैसे ‘गैरराजनीतिक पृष्ठभूमि’ वाले लोगों का ‘राजनीतिक’ उपयोग जमीन से जुड़े लोगों को अखरेगा लेकिन नीतीश ऐसी किसी आपत्ति को न तो तवज्जो देते हैं न देंगे। और चौथी, सोलह सदस्यीय इस टीम में बिहार में लगभग इतने ही प्रतिशत आबादी वाले यादवों का कोई प्रतिनिधि नहीं है। यह एक तरह से इस बात की स्वीकृति (या शायद समझौता) है कि यादवों की राजनीति केवल लालूजी ही करें।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप