गुब्बारे: 1
किसी भारी चीज से
बाँध देते हैं जैसे
धागा
गुब्बारे का
वैसे ही
बाँध लेता हूँ
तुमसे
स्वयं को
कि
कहीं खो न जाऊँ
जमीन और
आसमान के बीच।
गुब्बारे: 2
उड़ता हूँ
पंछियों-सा
आसमान में
थामते हैं
मुझे
तुम्हारी आँखों के
गुब्बारे।
गुब्बारे: 3
आसमान है
हवा है
आँचल भी है तुम्हारा
चलो,
खेलें
गुब्बारे से।
गुब्बारे: 4
कभी उड़ता हूँ
मैं
कभी उड़ते हैं
गुब्बारे
मैंने
सीख लिया
उड़ना
आँख-मिचौनी में।
गुब्बारे: 5
गुब्बारे
जब भीतर
उतर जाते हैं
बाँहों में
पर
आते हैं।
गुब्बारे: 6
हल्के हैं
गुब्बारे
कि
मैँ हूँ भारी?
गुब्बारे ने पूछा।
गुब्बारे: 7
तुमने
किस घागे से बाँधा
चाँद और सूरज
कब खोलोगी
अपने गुब्बारों का
राज
पृथ्वी?
गुब्बारे: 8
ढले होंगे
शब्द
गुब्बारों में
कविता ने
बनाई होगी जगह
तारों में।
डॉ. ए. दीप की कविता