सिंहासन पर खड़ाऊं रखकर शासन चलाने का उदाहरण पूरी दुनिया में या तो रामायण की कथा में मिलता है या फिर तमिलनाडु की राजनीति में। 22 साल पहले अक्टूबर 1994 में जब तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन बीमार पड़े, तब उनके दो सहयोगी मंत्रियों को सीएम का पोर्टफोलियो दिया गया लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। अब जबकि जयललिता बीमार हैं, पन्नीरसेल्वम को सीएम का पोर्टफोलियो तो दिया गया लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। और संयोग देखिए कि दोनों ही बार मुख्यमंत्री का अघोषित कार्यालय अपोलो अस्पताल ही रहा।
गौरतलब है कि 68 वर्षीया जयललिता को 22 सितंबर को बुखार और डिहाइड्रेशन की शिकायत पर अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें देखने के लिए ब्रिटिश डॉक्टरों को भी बुलाया गया। बाद में पता चला कि उनके फेफड़ों में काफी संक्रमण है जिसकी वजह से उन्हें रेस्पिरेटरी सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया है। ये तमाम जानकारियां छन-छन कर मिल रही हैं लेकिन अस्पताल उनके स्वास्थ्य की ठीक-ठीक जानकारी नहीं दे रहा है, जिसके चलते राज्य में संशय का माहौल है। कहीं उनके लिए पूजा की जा रही है तो कहीं उनकी सेहत को लेकर अफवाह फैलाने के आरोप में गिरफ्तारी हो रही है। राहुल गांधी, अरुण जेटली, अमित शाह और राज्यपाल सी विद्यासागर राव भी उन्हें देखने गए, लेकिन किसी को उनसे मिलने नहीं दिया जा रहा। उधर हाईकोर्ट ने वह याचिका खारिज कर दी जिसमें उनके स्वास्थ्य की जानकारी सार्वजनिक किए जाने की मांग की गई थी।
अनिश्चिचतता के इसी माहौल में पन्नीरसेल्वम को लाया गया है जो कैबिनेट की अध्यक्षता तो करेंगे लेकिन प्रशासनिक मामलों में उनका निर्णायक हस्तक्षेप शायद ही हो। कारण यह कि जयललिता की विश्वासपात्र पूर्व आईएएस शीला बालाकृष्णन ने ऐसे सारे मामले पहले से ही संभाल रखे हैं। वैसे भी एआईडीएमके की समूची राजनीति और पार्टी के सारे समर्थक जयललिता के आभामंडल में ही सिमटे हैं।
एक बात और, बाकी राज्यों में मुख्यमंत्री के परेशानी में पड़ने पर शासन का अधिकार प्राय: परिवार में ही ट्रांसफर कर दिया जाता है, लेकिन एआईएडीएमके की मुश्किल यह है कि जयललिता का सीधे तौर पर कोई परिवार भी नहीं है। ऐसे में आप ही बताएं, अम्मा की खड़ाऊं से शासन ना चले तो और क्या हो?
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप