नवरात्र यानि नव अहोरात्र यानि नौ विशेष रात्रियां। इन नौ रात्रियों में ‘शक्ति’ के नौ रूपों की उपासना की जाती है। हमारी परम्परा में रात्रि को ‘सिद्धि’ का प्रतीक माना गया है। ऋषि-मुनियों ने भी दिन की अपेक्षा रात्रि को अधिक महत्व दिया है। गौर करने की बात है कि केवल नवरात्र ही नहीं हम दीपावली भी रात में मनाते हैं, होलिका दहन रात में ही करते हैं और शिव के विवाह दिन को भी शिवरात्रि कहते हैं। प्रश्न उठता है, ऐसा क्यों? आखिर इस रात्रि का रहस्य क्या है? चलिए, समझने की कोशिश करते हैं।
हमारे ऋषि-मुनि हजारों वर्ष पूर्व यह जान चुके थे कि रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। आगे चलकर आधुनिक विज्ञान ने भी इस तथ्य पर मुहर लगाई। आप अगर ध्यान दें तो दिन में जो आवाज़ दूर तक नहीं जाती, रात्रि में वही आवाज़ बहुत दूर तक चली जाती है। इसके पीछे एक कारण तो यह है कि रात में दिन वाला कोलाहल नहीं होता और दूसरा यह वैज्ञानिक तथ्य कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं, जिसका जीता-जागता उदाहरण रेडियो है। आपने कई बार महसूस किया होगा कि कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना यानि सुनना मुश्किल होता है जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे-से-छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है।
सूर्य की किरणें दिन के समय जिस तरह रेडियो तरंगों को रोकती हैं, ठीक उसी तरह मंत्रजाप से उत्पन्न विचार-तरंगों के मार्ग में भी दिन के समय रुकावट होती है। इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है। इस समय मंदिरों में बजने वाले घंटे और शंख की आवाज से वातावरण दूर-दूर तक कीटाणुओं से रहित भी हो जाता है।
रात्रि के इस तर्कसंगत रहस्य और वैज्ञानिक तथ्य को समझते हुए जो नौ विशेष रात्रियों में शक्ति के नौ रूपों – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री – की उपासना करते हुए पूरे संकल्प और आस्था के साथ शक्तिशाली विचार-तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात् मनोकामना सिद्धि अवश्य होती है। यह भी स्मरणीय है कि अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक चलने वाले व्रत-नियम के लिए नौ रातों को ही गिनते हैं, इस कारण भी इसका नवरात्र नाम सार्थक है।
एक बात और, रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है और माना गया है कि इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति ही माँ दुर्गा हैं। शरीर तंत्र को सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए इन नौ द्वारों की शुद्धि का अनुष्ठान नौ विशेष रात्रियों में किया जाता है। अगर इसे दूसरे रूप में समझें तो नवरात्र का आगमन दो ऋतुओं के संक्रमण काल के दौरान होता है। इस दौरान खानपान बदलता है और मौसमी बीमारियो की संभावना रहती है। ऐसे में तन और मन को पूर्णत: निर्मल और स्वस्थ रखते हुए तमाम विकारों से स्वयं को मुक्त करने का पर्व है नवरात्र, जिसे भगवान राम ने भी किया था और अपनी खोई शक्ति अर्जित की थी।
‘बोल बिहार’ के लिए रूपम भारती