बिहार में शराबबंदी पर आए हाईकोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक गलियारों से लेकर सोशल मीडिया तक जहाँ घमासान मचा हुआ है, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने वादे के मुताबिक गांधी जयंती के दिन नया शराबबंदी कानून लागू कर दिया। कैबिनेट से बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016 पर मुहर लगते ही इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी गई।
कैबिनेट ने नीतीश के निर्णय पर एकजुटता दिखाते हुए ना केवल बिहार को शराबमुक्त राज्य बनाने का संकल्प दोहराया बल्कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय भी लिया। बता दें कि इस निर्णय पर तत्परता दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट में आज याचिका भी दायर कर दी गई, जिस पर सात अक्टूबर को सुनवाई होगी।
शराबबंदी का नया कानून लागू करते हुए नीतीश ने कहा कि अब लोग पहले की तरह शराब पर अपना पैसा बर्बाद नहीं कर रहे हैं, बल्कि उस पैसे का बेहतर इस्तेमाल किया जा रहा है। लोगों की माली हालत ठीक हो रही है। नीतीश ने कहा कि बिहार सरकार की ओर से लागू किए गए शराबबंदी कानून को व्यापक जनसमर्थन मिला है और लोग चाहते हैं कि राज्य में शराबबंदी लागू रहे। उन्होंने कहा कि नए कानून को लागू करने का गांधी जयंती से बेहतर कोई मौका नहीं हो सकता था इसलिए इस मौके पर यह कानून लागू करने का फैसला किया। यह बिहार सरकार की ओर से बापू को श्रद्धांजलि है।
नए शराबबंदी कानून को लेकर सोशल मीडिया पर पक्ष-विपक्ष में कमेंट्स की जैसे बौछार आ गई। विरोधियों ने इसे ‘सस्ती लोकप्रियता की कवायद’ बताया और घर में शराब मिलने पर सभी घरवालों को जेल में डालने जैसे प्रावधानों को ‘तानाशाही’ करार दिया। उधर समर्थकों ने इसे ‘15 साल के शासन में उठाया गया सबसे अच्छा कदम’ और बिहार के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में नीतीश कुमार की ‘प्रतिबद्धता’ माना।
सोशल मीडिया का एक कमेंट खासा दिलचस्प और विशेष तौर पर उल्लेखनीय है। इस कमेंट में कहा गया है कि ‘ये (शराबबंदी) अंगुलीमाल से बाल्मीकि बनने की आश्चर्यजनक घटना है।’ इसमें कोई दो राय नहीं कि यह नीतीशजी की ही सरकार थी जिसने बिहार में शराब की ‘व्यवस्थित’ बिक्री को ‘प्रोत्साहित’ कर उससे प्राप्त ‘राजस्व’ का रिकॉर्ड कायम किया था। उसके बाद उन्होंने एकदम से ‘यू टर्न’ लिया और ऐसा लिया कि विपक्षी दल से लेकर हाईकोर्ट तक को शराबबंदी कानून के कई प्रावधानों को ‘आवश्यकता से अधिक कठोर’ कहना पड़ा।
वैसे शराबबंदी पर नीतीशजी के वर्तमान सख्त रुख को ‘अंगुलीमाल’ का ‘बाल्मीकि’ बन जाना मान लिया जाय और इसे उनकी ‘राजनीतिक महत्वाकांक्षा’ से भी जोड़ दिया जाय तो भी यह आलोचना का कम और सराहना का विषय अधिक है। लेकिन इतना कहना पड़ेगा कि इस कानून के कई प्रावधान अव्यावहारिक और कदाचित् अविवेकी हैं। मसलन, घर में शराब पाए जाने पर 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी सदस्यों, जिसमें बुजुर्ग और महिला भी शामिल होंगे, को जेल भेजने का प्रावधान, गांव या शहरविशेष में शराबबंदी का उल्लंघन होने पर पूरे गांव या शहरविशेष पर सामूहिक जुर्माना, ऐसे मामलों में सजा की अवधि कम-से-कम तीन साल और जुर्माना कम-से-कम एक लाख रखना, छोटे-बड़े सभी अपराध को गैरजमानती करना आदि। काश, गांधी जयंती पर इन कानूनों को लागू करते समय यह याद रखा जाता कि गांधीजी किसी भी अपराध के लिए दंडित करने की बजाय अपराधी के हृदय-परिवर्तन में अधिक यकीन रखते थे!
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप