इन दिनों तीसरी क्लास में पढ़ने वाले मेरे बेटे की परीक्षा चल रही है। कल हिन्दी दिवस के दिन उसका ‘स्टडी लीव’ था और वो घर पर ही था। सुबह के नौ बजे होंगे। हर दिन की तरह मैं ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था कि उसके एक दोस्त ने कॉल किया। कॉल मेरे ही मोबाईल पर था, लिहाजा मैंने ही उठाया। बेटे के दोस्त ने उधर से बाकी दिनों की तरह नमस्ते करने की बजाय बड़ी विनम्रता से ‘हैप्पी हिन्दी डे, अंकल’ कहा और मैं कुछ बोलूँ उससे पहले ही मेरे बेटे के लिए पूछ लिया। मैंने अपने बेटे को बुलाकर मोबाईल उसके हाथ में दिया और वहीं पास लगी कुर्सी पर बैठ गया।
मैं एकदम सन्नाटे में था। मैंने पहली बार हिन्दी दिवस की बधाई अंग्रेजी में सुनी थी और हिन्दी का ‘ईमानदार’ छात्र रहे होने के कारण समझ नहीं पा रहा था कि इस पर प्रतिक्रिया कैसे करूँ? या करूँ भी कि नहीं? नौ-दस साल के उस बच्चे ने वही कहा था जो कहना सीखने के लिए हम जैसे माता-पिता अपने बच्चे को ‘एयरकंडीसन्ड’ स्कूलों में भेजा करते हैं। पराकाष्ठा तो तब हुई जब हिन्दी दिवस पर भारतीय जनता पार्टी के विचारक रहे सुधीन्द्र कुलकर्णी की बधाई अंग्रेजी में आई। इतना ही नहीं, इस खास दिन भी वे मातृभाषा के साथ अंग्रेजी को भी बढ़ावा देने की बात कहना नहीं भूले।
हिन्दी दिवस को लेकर सोशल मीडिया पर भी दिन भर चहल-पहल रही। बड़े लोगों को तो ऐसे अवसरों पर और भी परेशान होना पड़ता है। पहले उन्हें केवल सरकारी आयोजनों में हिस्सा लेना होता था, अब उन्हें सोशल मीडिया का ‘धर्म’ भी निभाना पड़ता है। ऐसे में अगर कोई भूल हो ही जाए तो कौन-सी आफत आ जानी है! अब ज़ी समूह के मुखिया और राज्य सभा सांसद सुभाष चन्द्रा को ही लें, जिन्हें साहित्य अकादमी ने हिन्दी दिवस पर आयोजित समारोह में वक्ता के तौर पर बुलाया था। सुभाष चन्द्रा ने इस दिन अपने ट्वीट में हिन्दी का इस्तेमाल तो किया लेकिन अपनी उस पुस्तक का नाम ही गलत लिख बैठे जिसको लेकर वो ट्वीट था। उन्होंने लिखा – “ये #हिन्दीदिवस मेरे लिए खास महत्व रखता है, आज के दिन मेरी पुस्तक द झेड फेक्टर’ हिन्दी में उपलब्ध हो रही है”, जबकि उनकी किताब का नाम ‘द ज़ेड फेक्टर’ है।
इस हिन्दी दिवस को ‘अविस्मरणीय’ बनाने में केन्द्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने भी अपना योगदान दिया। पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री होने के कारण उनका विशेष दायित्व बनता था आखिर। स्मृति ने ट्वीट किया – “हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में आइए हम सब हिन्दी भाषा के संरक्षण के प्रति जागरूकता प्रचारित करने का प्रण लें।” इस ट्वीट के साथ उन्होंने एक तस्वीर भी शेयर की, जिसमें उन्होंने लिखा – “हिन्दी दिवस पर सभी हिन्दी भाषीयो को बधाई।” शायद उन्होंने उत्साह के ‘अतिरेक’ में ‘हिन्दी भाषियों’ को ‘हिन्दी भाषीयों’ लिख दिया हो और ये भूल उन्हें छोटी लग रही हो, लेकिन किसी वक्त जिनके कंधों पर पूरे देश की शिक्षा का दायित्व रहा हो उनसे इतनी-सी भूल भी निराशाजनक है।
हम और हमारा सरकारी तंत्र हिन्दी दिवस के दिन जितना ‘तत्पर’ होते हैं, अगर उसकी एक चौथाई तत्परता भी सालों भर रहे तो हिन्दी और हमारे देश का कायाकल्प हो जाय। पर कड़वी सच्चाई यह है कि मैंने भी, स्वयं को हिन्दी का ‘गंभीर’ सेवक मानने और यहाँ इतनी दार्शनिकता बघारने के बावजूद, अपने बेटे को उसके दोस्त का कॉल आने तक ये नहीं सिखाया था कि उसे अपने बड़ों और मित्रों को हिन्दी दिवस की बधाई देनी चाहिए और ‘कम-से-कम’ ये बधाई हिन्दी में देनी चाहिए।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप