केन्द्र की मोदी सरकार ने उन 68 देशों में अपना प्रतिनिधि भेजने का फैसला लिया है, जहाँ अब तक सरकार के किसी प्रतिनिधि ने यात्रा नहीं की है। इस निर्णय के तहत गृह मंत्री राजनाथ सिंह यूरोपीय देश हंगरी का दौरा करेंगे। वहीं, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद एस्टोनिया, संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार टोंगा, खाद्य मंत्री रामविलास पासवान मॉरीशस और कृषि मंत्री राधामोहन सिंह सूरीनाम की यात्रा पर निकलेंगे।
इस संदर्भ में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की ओर से मंत्रियों को लिखे पत्र में कहा गया है कि सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि 2016 के अंत तक हमारे प्रतिनिधि सभी देशों का दौरा कर लें। सरकार चाहती है कि इन देशों में कम-से-कम एक मंत्री जरूर पहुँचें।
विदेश मंत्री की ओर से दिए गए संदेश में कहा गया है कि इन देशों की यात्राओं की पूरी व्यवस्था वहाँ मौजूद भारत के राजदूत करेंगे। इसके अलावा मंत्री यदि किसी स्थान विशेष का दौरा करना चाहेंगे तो उसकी व्यवस्था भी की जाएगी। सरकार के इस अभियान का लक्ष्य इन देशों से द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करते हुए सहयोग के क्षेत्रों का विस्तार और विदेशी निवेश को बढ़ावा देना है।
मौजूदा सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विदेश दौरों की लगातार चर्चा (और आलोचना भी) होती रही है। गौरतलब है कि हमारे प्रधानमंत्री 190 देशों में से 46 देश घूम चुके हैं। अब वह चाहते हैं कि उनकी सरकार के बाकी मंत्री उनका साथ दें। विदेशी निवेश के लिए मौजूदा सरकार इन दौरों को अनिवार्य मानती है। इस साल जून में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बड़ी बेबाकी से कहा था कि विदेशी निवेश घर बैठे-बैठे नहीं आने वाला। बकौल सुषमा पिछले दो सालों में भारत को 3,69,000 करोड़ रुपए विदेशी निवेश से प्राप्त हुए हैं, जो उनके मुताबिक यूपीए के शासकाल से 43 प्रतिशत ज्यादा है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया था कि 2016 के अंत तक दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं होगा जिससे भारत का सम्पर्क ना हो।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप