ब्रिटेन में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार दुनिया के शीर्ष 400 शिक्षण संस्थानों की सूची में भारत के केवल सात शिक्षण संस्थान ही जगह बना पाए हैं। इस सूची में पहले तीन स्थानों पर अमेरिका के शिक्षण संस्थानों का कब्जा है, जबकि ब्रिटेन के प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय को पहली बार शीर्ष तीन से बाहर होना पड़ा है।
‘क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2016-17’ के इस सर्वेक्षण के अनुसार मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) लगातार पाँचवें साल शीर्ष पर है। दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश: अमेरिका के ही स्टैनफोर्ड और हावर्ड विश्वविद्यालय हैं।
सर्वे के नतीजे बताते हैं कि शीर्ष 200 में बने रहने ते लिए अभी भी भारतीय शिक्षण संस्थानों को मशक्कत करनी पड़ रही है। इस साल की सूची में बेंगलुरु स्थित ‘इंडियन इस्टिट्यूट ऑफ साइंस’ 152वें और आईआईटी दिल्ली 185वें स्थान पर है, जबकि पिछले साल ये दोनों संस्थान क्रमश: 147वें और 179वें स्थान पर थे। शीर्ष 400 की सूची में शामिल अन्य पाँच संस्थान हैं – आईआईटी बंबई (219), आईआईटी मद्रास (249), आईआईटी कानपुर (302), आईआईटी खड़गपुर (313) और आईआईटी रुड़की (399)। गौरतलब है कि पिछले साल ये पाँचों संस्थान क्रमश: 202वें, 254वें, 271वें, 286वें और 391वें स्थान पर थे। इसका अर्थ यह है कि भारत के इन सात संस्थानों में केवल आईआईटी मद्रास ने ही अपनी रैंकिंग में 5 स्थानों का सुधार किया है, जबकि शेष छह संस्थानों की रैंकिंग में गिरावट आई है।
क्यूएस इंटेलिजेंस यूनिट के रिसर्च हेड बेन सॉटर ने भारतीय संस्थानों की रैंकिंग में गिरावट के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार ठहराया है उनमें भारत में अन्य अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम संख्या में पीएचडी क्वालिफाइड शोधकर्ताओं का होना है। भारत विदेश से भी बहुत कम संख्या में पीएचडी क्वालिफाइड शोधकर्ताओं को हायर करता है। इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त पूंजी निवेश का ना होना रैंकिंग में गिरावट का दूसरा बड़ा कारण है। क्यूएस इंटेलिजेंस यूनिट के मुताबिक इस साल उन देशों के संस्थानों ने बेहतर रैंकिंग हासिल की है जहाँ शिक्षा के क्षेत्र में फंडिंग ज्यादा है या फंडिंग में बढ़ोतरी की जा रही है।
‘बोल बिहार’ के लिए रूपम भारती