आज ऑफिस से जल्दी घर आया था। करोड़ों भारतीयों की तरह मैं भी चाहता था कि ‘इतिहास’ को बनता हुआ देखूं। साक्षी के ब्रॉन्ज के बाद सिंधू का सिल्वर तो कल ही तय हो चुका था, पर आज उस सिल्वर का रंग ‘सुनहला’ होते देखना चाहता था। 21 साल की पीवी सिंधू ने दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी स्पेन की कैरोलीन मरीन के साथ खेला भी लगभग बराबरी पर। पर खेल तो खेल है। जीत किसी एक की ही होनी थी, सो मरीन जीत गई। सिंधू के सिल्वर का रंग ‘सुनहला’ होते-होते रह गया। पर क्या हुआ कि सोने का पदक नहीं मिला सिंधू को, उसने तो वो कर दिखाया कि सोने से भी उसे तौल दें तो कम होगा। सच तो यह है कि देश की दो बेटियों ने इतिहास कल ही रच दिया था। सुबह साक्षी तो शाम होते-होते सिंधू पूरे देश को ‘रक्षाबंधन’ का अद्भुत, अभूतपूर्व, अविस्मरणीय ‘उपहार’ दे चुकी थीं।
बहरहाल, सिंधू ने आज रियो में बैडमिंटन महिला सिंगल्स का सांस रोक देने वाला फाइनल खेला और शुरुआत में पिछड़ने के बावजूद पहला सेट 21-19 से अपने नाम कर लिया। दूसरे सेट में मरीन ने वापसी की और 12-21 से जीत दर्ज की। निर्णायक तीसरे सेट में एक-एक प्वाइंट के लिए दोनों खिलाड़ियों का संघर्ष देखने लायक था। एक समय तो 10-10 की बराबरी पर थीं दोनों, पर अंतत: मरीन का अनुभव काम आया और उसने 15-21 से फाइनल जीत लिया।
सिंधू हारीं जरूर लेकिन सिल्वर जीतकर वो ओलंपिक में ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गईं। यही नहीं, भारतीय ओलंपिक इतिहास में ये किसी भी खिलाड़ी द्वारा चौथा व्यक्तिगत सिल्वर मेडल है। इससे पहले ये सफलता बस राज्यवर्द्धन सिंह राठौर (ट्रैप शूटिंग), सुशील कुमार (कुश्ती) और विजय कुमार (शूटिंग) ने हासिल की है।
फाइनल हार कर भी सवा करोड़ धड़कते दिलों को जीत लेने वाली सिंधू को ‘बोल बिहार’ का सलाम। शायद ये पहला मौका था जब क्रिकेट के लिए सूनी पड़ने वाली इस देश की सड़कें बैडमिंटन के लिए खाली हो गई हों।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप