यूपी के बुलंदशहर में दिल्ली-कानपुर हाईवे पर गैंगरेप मामले में जिस तरह राजनीति की जा रही है उससे ये तो साबित हो गया है कि देश के नेताओं में सारी संवेदनशीलता समाप्त हो गई है। जिस वक्त दोषियों को कड़ी-से-कड़ी सजा देनी चाहिए उस वक्त विपक्षी पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में व्यस्त है। कोई सूबे में कानून व्यवस्था के बहाने राज्य सरकार पर सवाल उठा रहा है, तो कोई इसे विपक्षी दल की साजिश बताने की कोशिशों में लगा हुआ है। किसी भी नेता को पीड़ित परिवार का दर्द नहीं दिख रहा। मामले में 13 साल की मासूम किशोरी और उसकी मां के साथ जो हुआ उसकी पीड़ा किसी को महसूस नहीं हो रही। हां, राजनीति किस तरह चमकाई जाये, इसकी ब्रांडिग के तरीकों को खोजने में सब जरूर व्यस्त नजर आ रहे हैं।
‘शक्ति’ की पूजा करने वाले इस देश में जब एक नाबालिग लड़की के साथ गैंगरेप की घटना घटी तो लोगों ने इसे बहुत हल्के में लिया। हर बार की तरह अफसोस जताकर वो आगे बढ़ गए। लेकिन, किसी ने भी पीड़िता या उसके परिवार की मानसिक अवस्था के बारे में जरा भी सोचने की जहमत नहीं उठाई।
13 साल की कच्ची उम्र जहां ख्वाबों की दुनिया अंगड़ाई लेती है, सपने मचलते हैं। उस उम्र में उस छोटी-सी बच्ची की सारी कल्पनाओं को कुछ पतित लोगों ने बड़ी बेरहमी से कुचल डाले। जरा सोचिये, क्या बीती होगी उस परिवार पर जिसके सामने उनके घर की महिलाओं की मर्यादा से खेला गया और वो विवशता से छटपटाते रहे। सोचिये, क्या गुजरी होगी उस मां पर जो अपने सामने ही अपनी बेटी के साथ कुकृत्य होता देखती रही और कुछ ना कर सकी और क्या बीती होगी उस बेटी पर जिसने अपनी मां को अपनी ही आंखों के सामने दरिंदों से लुटते देखा होगा।
आखिर कैसा है ये देश और कैसे हैं यहां के लोग? जहां रेप पीड़िता गुनहगार होती हैं और रेपिस्ट खुलेआम सीना तानकर सड़कों पर घूमते हैं। हम खुद को सबसे बड़ा संस्कारी देश कहते हैं। लेकिन, रेप मामले में पीड़िता को दोषी ठहराकर उसे मानसिक यातनायें देते हैं। यहां निर्भया कांड जैसा भयंकर गुनाह किया जाता है। विरोध में कुछ महीने धरना-प्रदर्शन का दौर चलता है और फिर सब कुछ शांत हो जाता है। ‘निर्भया’ की याद में सरकार नियम बनाती है, महिलाओं के लिए फंड जारी करती है, लेकिन किसी दूसरी लड़की के साथ फिर ऐसा कुछ ना हो इसके लिए कानून-व्यवस्था को दुरूस्त नहीं कर पाती।
इधर ये राजनीतिज्ञ हैं जो महिलाओं के हक के लिए लड़ने की बातें करते हैं, उनके सशक्तिकरण की दुहाईयां देते हैं और फिर किसी लड़की के गैंगरेप के बहाने राजनीति चमकाने की घिनौनी कोशिश भी करते हैं। इनका सारा ध्यान बस अपनी राजनीति पर होता है, चाहे मानवता कराहती ही क्यों ना रहे।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने न्याय के बहाने इस देश में एक ऐसी गलत परिपाटी की शुरूआत कर दी जहां निशाना भी स्त्रियों को बनाया जाता है, सवाल भी उन्हीं के चरित्र पर उठाये जाते हैं, इस दाग को गलत साबित करने की जिम्मेवारी भी स्त्रियों पर डाली जाती है और अंत में फैसला पुरुष समाज के हक में सुना दिया जाता है।
इस मामले में भी जिस तरह राजनीति की बिसात पर गोटियां बिछाईं गईं वो इसी तथ्य को साबित करती है। अगर ऐसा नहीं होता तो मामले की सीबीआई जांच का आदेश देने की बजाय सरकार त्वरित कार्रवाई करते हुए दोषियों को ऐसी कड़ी सजा देती जिससे उन सबकी रूह कांप जाती। लेकिन, यहां असल मुद्दा गौण है और उसके बहाने राजनीति की पाठशाला जारी है।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह