आज कारगिल युद्ध को 17 साल हो गए। 17 साल पहले कारगिल को कोई जानता तक नहीं था और आज देश के बच्चे-बच्चे की जबान पर कारगिल का नाम है। कारगिल श्रीनगर से 215 किलोमीटर दूर स्थित है। इस जगह पर सालों भर सिर्फ बर्फ-ही-बर्फ नजर आती है। ‘जोजिला पास’ बंद कर देने पर 7 महीनों तक देश से कट जाता है ये हिस्सा। इसी कारगिल में जब भारत-पाकिस्तान का युद्ध छिड़ा था तो सैकड़ों वीर जवानों ने देश की सीमा की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे।
साल 1999 में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध के रूप में जब अपना पासा फेंका तो शुरू में इसे आतंकवादी हमला समझा गया। लेकिन जैसे ही पाकिस्तानी सेना द्वारा भारत पर हमले की बात समझ में आई, पूरा देश चकित रह गया। हमला उस वक्त किया गया था जब लोग भारत-पाकिस्तान के बीच शांति की नई पहल को बहुत उत्सुकता और उम्मीद से देख रहे थे। हमले से कुछ महीनों पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर बस यात्रा के द्वारा एक नई ईबारत लिखने की कोशिश की थी। खुद जनरल परवेज मुशर्रफ हेलीकॉप्टर से भारत आये थे। उनके साथ 80 ब्रिगेड के उस वक्त के कमांडर ब्रिगेडियर मसूद असलम भी थे। परवेज मुशर्रफ ने भारतीय सीमा के 11 किलोमीटर अंदर जिकरिया मुस्तकार में एक रात भी बिताई थी। फिर अचानक पाकिस्तान की इस हरकत ने देश को स्तब्ध कर दिया।
हालांकि जो पाकिस्तान की फितरत को जानते-समझते थे, उनके लिए उसका ये कदम कुछ नया नहीं था। धोखा पाकिस्तान की फितरत में शामिल है और दोस्ती के बीच हुए इस हमले ने ये साबित कर दिया कि पाकिस्तान भारत से किसी भी सूरत में अमन-चैन नहीं चाहता। असल में पाकिस्तान इस हमले के द्वारा लद्दाख को कश्मीर से अलग करने की साजिश रच रहा था। इधर दोस्ती के भरोसे में बेफ्रिक भारत इस हमले के लिए तैयार ना था। लेकिन, जैसे ही स्थिति की गंभीरता का अहसास हुआ, भारतीय सेना ने अपनी हिम्मत, बहादुरी, दृढ़ निश्चय के दम पर पाकिस्तान के सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए और उन्हें पीछे लौटने पर मजबूर कर दिया।
पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध की तैयारी साल 1998 से ही शुरू कर दी थी। उसने अपनी सेना के 5000 जवानों को कारगिल की चढ़ाई करने के लिए भेजा था। पर इस युद्ध में उसे अंतत: 2700 से ज्यादा सैनिक खोने पड़े। ये युद्ध पाकिस्तान के सिए 1965 और 1971 से भी ज्यादा नुकसानदायक सिद्ध हुआ। खुद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने माना कि कारगिल युद्ध पाकिस्तान सेना के लिए आपदा साबित हुआ।
कारगिल युद्ध में मुश्किलों के बाद भी भारत ने ‘सीमा’ ना लांघकर पूरी दुनिया को अपने संयम का परिचय दिया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए भारत की प्रशंसा की गई और पाकिस्तान के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार की कड़ी भर्त्सना की गई। इस हार से पाकिस्तान के अंदरूनी हालात इतने बिगड़ गए कि वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को वॉशिंगटन में शरण लेकर अपनी जान बचानी पड़ी।
आज उसी कारगिल युद्ध का 17 वां विजय दिवस है। ये वक्त है अपने उन तमाम सेना के सैनिकों को सलाम करने का जो अपनी जान की परवाह ना करके दिन-रात हमारी सुरक्षा में लगे रहते हैं। हम ऋणी हैं उन सैनिकों के जिन्होंने अपने देश पर अपनी जान कुर्बान कर दी। देश उनका ये त्याग कभी नहीं भूल सकता। हमारी ओर से उन वीर सपूतों को शत्-शत् नमन। जय हिंद।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह