ध्यानचंद के बाद भारतीय हॉकी के सबसे बड़े जादूगर मोहम्मद शाहिद आखिरकार इस खाकसार दुनिया को अलविदा कह चले गए। जाते-जाते हॉकी के इस बेमिसाल खिलाड़ी ने दुनिया भर के हजारों-लाखों लोगों की आंखों में आंसू ला दिए। मोहम्मद शाहिद लंबे समय से पेट दर्द की शिकायत से जूझ रहे थे। जिसकी वजह से उन्हें 29 जून को वाराणसी के सुंदर लाल अस्पताल में भर्ती कराया गया। स्थिति में कोई सुधार ना होता देख बाद में उन्हें गुड़गांव के मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में दाखिल कराया गया। वहीं उन्होंने 20 जुलाई को अपनी आखिरी सांसें लीं। महज 56 साल की उम्र में उनके असमायिक निधन से खेल जगत में सन्नाटा पसर गया है।
मोहम्मद शाहिद का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 14 अप्रैल 1960 को एक साधारण परिवार में हुआ था। छोटी सी उम्र में ही उन्होंने बनारस की संकरी गलियों से निकलकर अपनी ड्रिबलिंग से सारी दुनिया के खेल प्रेमियों को अपना मुरीद बना लिया। अपने धारदार खेल से उन्होंने 17 साल की कच्ची उम्र में ही भारतीय जूनियर हॉकी टीम में जगह बना ली। गेंद पर उनका गजब का नियंत्रण था और हॉकी स्टिक उनके इशारों पर नाचती थी। जिन्होंने महान् खिलाड़ी ध्यानचंद का खेल देखा था वो मोहम्मद शाहिद के खेल को देखकर दांतों तले ऊंगलियां दबा बैठते थे। साल 1980 शाहिद के कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। कराची में हुए चैंपियंस ट्रॉफी में उस साल उनकी और जफर इकबाल की जोड़ी ने धूम मचा दी। इस टूर्नामेंट में शाहिद को बेस्ट फॉरवर्ड प्लेयर घोषित किया गया। उसी साल मास्को में हुए ओलंपिक में शाहिद की टीम ने स्वर्ण पदक जीता। भारतीय टीम ने ये करिश्मा 16 साल बाद किया था। उनके खेल से प्रभावित होकर पाकिस्तान के महान् सेंटर फॉरवर्ड हसन सरदार ने उन्हें पाकिस्तानी टीम में शामिल होने का न्योता तक दे दिया था।
हॉकी में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 1981 में अर्जुन अवॉर्ड और साल 1986 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। पर बाद के दिनों में रेलवे में नौकरी कर अपनी गुजर-बसर करने वाले शाहिद तंगहाली में जी रहे थे। वो अपने ईलाज का खर्च भी उठाने में असमर्थ थे। पूर्व हॉकी कप्तान धनराज पिल्लै ने उनके ईलाज का खर्च मोदी सरकार से उठाने की अपील की थी।
सौम्य, सरल और बेहद शांत स्वभाव के मोहम्मद शाहिद ने खेल को ही अपना सब कुछ माना। वो जितने बड़े खिलाड़ी थे उससे भी बढ़कर एक अच्छे इंसान थे। देश उनके लिए सब कुछ था। तभी तो जब मलेशिया के सुल्तान अजलान शाह ने उन्हें मलेशिया में ही रह जाने का प्रस्ताव दिया तो मोहम्मद शाहिद ने एक पल गंवाये बिना उसे ठुकरा दिया। काशी को अपनी सांसों में बसाने वाले इस शख्स ने सुल्तान अजलान शाह से कहा “आप मुझे सब कुछ दे सकते हैं। लेकिन काशी और काशी की गंगा नहीं दे सकते।”
इतने बड़े देशभक्त और महान् खिलाड़ी की इस देश और देशवासियों ने कद्र तब की जब वो दुनिया को अलविदा कर चले गए। बुतों के इस देश में ईमानदार और सच्चे लोगों की कभी कोई खबर नहीं लेता। वो अखबारों की सुर्खियां तब बनते हैं जब दुनिया से चले जाते हैं। तभी तो चाहे हॉकी के जादूगर ध्यानचंद हों या महान् खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद दोनों जिंदगी भर मुफलिसी के शिकार रहे। सच बताईये, मोहम्मद शाहिद की मौत पर दो बूंद आंसू बहाकर उनका गुणगान करना क्या यही इस महान् खिलाड़ी को हमारी श्रद्धाजंलि है? अगर हां तो सुनो ऐ जानेवाले मोहम्मद शाहिद, फिर लौटकर इस देश मत आना… यहां तुम्हारे खेल और तुम्हारी ईमानदारी की कोई कद्र नहीं।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह