सपने: 1
नहीं भगवन !
मुझे नहीं चाहिएं ऐसे सपने
जो हथेलियों में समा न सकें।
सपने बड़े हों
तो बड़ी हो जाएं
हथेलियां भी !
सपने: 2
सपनों की खातिर
नींदें बेचीं
अब नींद खरीदता हूँ
सपने नहीं आते।
सपने: 3
अच्छा लगता है
थककर सोना
और हो जाना चूर-चूर
सपनों से।
सपने: 4
जब तुम्हारी करवट से
गुजरकर आती है…
हर नींद
सपना हो जाती है!
डॉ. ए. दीप की कविता