गुजरात में जूनागढ़ एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के नये शोध ने लोगों के कान खड़े कर दिए हैं। यूनिवर्सिटी ने चार सालों के शोध के बाद ये दावा किया है कि गिर के गायों के मूत्र में सोना पाया जाता है। यूनिवर्सिटी के फूड टेस्टिंग लैब में 400 गिर की गायों के मूत्र की जांच की गई। इसमें प्रति लीटर मूत्र में 3 से 10 मिली ग्राम सोने की मात्रा पाई गई। गायों के मूत्र में ये कीमती धातु आयन (गोल्ड सॉल्ट) के रूप में मिली। इसके साथ ही मूत्र में 5,100 कंपाउंड मिले हैं जिनमें से 388 में कई बीमारियां दूर करने का गुण मौजूद है।
इस नये शोध ने वेदों और पुराणों के उस तथ्य को सच साबित कर दिया है जिसमें गाय को साक्षात् लक्ष्मी का रूप बताया गया है। शास्त्रों ने गाय के दूध को सर्वोत्तम कहा है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में कहा गया है- ‘गवामधिष्ठात्री देवी गवामाद्या गवां प्रसू:। गवां प्रधाना सुरभिर्गोलोके सा समुद्भवा।‘ अर्थात् गौओं की अधिष्ठात्री देवी, आदि जननी, सर्वप्रथम सुरभि हैं। समुद्र मंथन में माता लक्ष्मी के साथ गाय भी समुद्र मंथन से निकली थीं। गाय को कामधेनु भी कहते हैं। हरेक हिन्दू मंदिर में गाय की मूर्ति अवश्य होती है। भगवान् कृष्ण ने तो ग्वाला का रूप धरकर गायों की सेवा भी की थी।
लेकिन, अंग्रेजी सत्ता के प्रादुर्भाव ने धीरे-धीरे हमारे मन से कृष्ण की ‘सखी’ गायों के प्रति श्रद्धा खत्म कर दी। हम गायों को एक वस्तु के तौर पर देखने लगे। अपनी लिप्सा में अंधे होकर हमने उनका जम कर दुरुपयोग किया। पहले हमने गाय के दूध के लिए उन्हें प्रताड़ित करना शुरू किया और बाद में गो-मांस का घृणित व्यापार भी शुरू कर दिया। देखते-ही-देखते गाय को पूजने वाला देश दुनिया का सबसे बड़ा गो-मांस निर्यातक बन गया।
‘गाय’ की राजनीति करके सत्ता में आई बीजेपी की सरकार ने तो नृशंसता की हद पार करते हुए नये-नये बूचड़खाने खोलने और उनके आधुनिकीकरण के लिए 15 करोड़ रूपये की सब्सिडी तक देने की घोषणा कर दी। सरकार की इस ‘कृपा’ की बदौलत देश को बासमती चावल से ज्यादा आय गो-मांस के निर्यात से हुई है। गो-मांस की बदौलत पिछले साल सरकार ने खून से रंगे 4.8 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा कमाये हैं। साल 2014-15 में देश ने 24 लाख टन गो-मांस निर्यात किया जो कि दुनिया में निर्यात किए जानेवाले गो-मांस का 58.7 फीसदी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ये कमाल तब भी किया था जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। हैरत होती है कि आज दुनिया भर में भारतीय संस्कृति के इस ‘ब्रांड अम्बेसेडर’ के मुख्यमंत्रित्व काल में अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की धरती पर जमकर गो-हत्या की गई। आंकड़े बताते हैं कि गुजरात का मांस-निर्यात 2010-11 में बढ़कर 22000 टन हो गया था। जबकि साल 2001-02 में ये 10,600 टन था।
इतना ही नहीं, देश के सबसे बड़े चार मांस निर्यातक भी हिंदू ही हैं। इनके नाम हैं सतीश और अतुल सभरवाल (अलकबीर एक्सपोर्ट), सुनील करण (अरेबियन एक्सपोर्ट), मदन एबट (एमकेआर फ्रोजन फूड्स) और एएस बिंद्रा (पीएमएलइंडस्ट्रीज) ।
ये सच है कि किसी भी देश की समृद्धि के लिए रुपयों की आवश्यकता होती है। लेकिन, रूपये किस तरह से कमाये जाते हैं ये भी बहुत मायने रखता है। अक्सर बड़े-बूढ़ों के मुंह से ये कहते हुए हम सबने सुना है कि हराम की कमाई में बरकत नहीं होती। तो फिर गायों की हत्या का ये घृणित कर्म कर अर्जित किये रुपये देश को कितनी आर्थिक सुरक्षा प्रदान करेंगे? हम जब मां कहने के बाद भी गाय जैसे मासूम पशु के साथ ये सलूक करेंगे तो क्या ईश्वर हमें दंडित नहीं करेगा? और क्या इस मुद्दे के द्वारा बीजेपी की राम, गाय और हिंदूवादी नारों के दोहरे मानदंड की कलई नहीं खुलती?
जूनागढ़ एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी का ये शोध गायों की स्थिति को कितना बेहतर बनायेगा ये तो कोई नहीं जानता। लेकिन, इस शोध ने उनलोगों के दिलों को उम्मीद की कुछ रोशनी जरूर दी है जो गाय को धर्म, संप्रदाय और किसी दल से ऊपर उठकर एक मासूम जीव होने के नाते प्रेम करते हैं। शायद इसी शोध के बहाने गायों का वो स्वर्णिम युग लौट आये जो करोड़ों भारतीयों को बचपन से सुनाई जाती है।
‘बोल बिहार’ के लिए प्रीति सिंह