तक़दीर बनाने वाले तूने कमी ना की… अब किसको क्या मिला, मुकद्दर की बात है… और ‘मुकद्दर’ नाम की इस चीज से कोई कभी पूरी तरह संतुष्ट नहीं होता। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद कुछ कर्मचारी संगठनों को विरोध जताते देख शायद आप ऐसा कुछ कहना चाहें। यह जानकर कि वेतन आयोग की इन सिफारिशों से सरकार के खजाने पर करीब 1.02 लाख करोड़ रुपए का सालाना बोझ बढ़ेगा, जबकि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2016-17 के आम बजट में पे-कमीशन लागू करने के लिए 70,000 करोड़ रुपए का प्रावधान ही किया था, इन संगठनों का विरोध पहली नज़र में ‘औचित्यपूर्ण’ ना लगे, लेकिन ये ‘निराधार’ हरगिज नहीं।
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय कैबिनेट ने आज सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। इन सिफारिशों के तहत केन्द्रीय कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में 23.5 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की जाएगी। इसमें बेसिक सैलरी में 14.27 प्रतिशत और भत्तों में 67 प्रतिशत का इजाफा शामिल है। जबकि पेंशनधारकों को 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी दी जाएगी। खास बात यह कि इन सिफारिशों में वेतन में 3 प्रतिशत सालाना बढ़ोतरी को भी बरकरार रखा गया है।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें 1 जनवरी 2016 से लागू होंगी। इसका अर्थ यह है कि कर्मचारियों का बढ़ा हुआ वेतन 1 जनवरी से जोड़ा जाएगा और उसका भुगतान एरियर के रूप में होगा और जोर देकर कहा गया है कि इसी साल होगा। इन सिफारिशों के लागू होने से लगभग 50 लाख कर्मचारी और 58 लाख पेंशनधारी सीधे तौर पर लाभान्वित होंगे।
बता दें कि वेतन आयोग ने कर्मचारियों के लिए न्यूनतम 18,000 रुपए प्रतिमाह और अधिकतम (कैबिनेट सचिव और इस स्तर के अधिकारी के लिए) 2,25,000 रुपए की सिफारिश की थी। इसके अनुसार अब तक 90,000 रुपए प्रति माह कमाने वाले अधिकारी को अब ढाई गुना से ज्यादा वेतन मिलेगा। पर बता दें कि सचिवों की अधिकार प्राप्त समिति इससे भी संतुष्ट नहीं थी। समिति ने 18,000 रुपए के स्थान पर करीब 23,500 रुपए और 2,25,000 रुपए के स्थान पर 3,25,000 रुपए करने की सिफारिश की थी। काश कि समिति ने अधिकतम को यथावत रखकर न्यूनतम को बढ़ाने की उदारता दिखाई होती! इसके न्यूनतम और अधिकतम की ‘खाई’ कम होती और किसी कर्मचारी संगठन को कोई शिकायत भी नहीं होती।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का एक दिलचस्प तथ्य यह है कि इसमें बेसिक पे के मामले में पिछले सात दशक में सबसे कम वृद्धि की सिफारिश की गई है। इसके बावजूद यह भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद का 0.7 प्रतिशत है। चलते-चलते यह भी बता दें कि इन सिफारिशों से बढ़ने वाले लगभग 1.02 लाख करोड़ रुपए के बोझ में से 28,450 करोड़ रुपए से अधिक का बोझ रेलवे बजट और शेष 73,450 करोड़ रुपए का बोझ आम बजट पर आएगा।
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप