कल गिरफ्तार की गई रूबी राय को आज एडीजे निगरानी की अदालत में पेश किया गया। एडीजे ने उम्मीद के विपरीत उसे जमानत देने की बजाय 14 दिनों के लिए जेल भेज दिया। अब रूबी को 8 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में बेउर जेल में रहना होगा। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने इंटर आर्ट्स टॉपर रूबी राय का रिजल्ट कल ही रद्द कर दिया था।
बता दें कि कल बोर्ड कार्यालय में रूबी को विशेषज्ञों के सामने साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। मीडिया समेत सारे लोग मानकर चल रहे थे कि 3 और 11 जून की तरह 25 जून को भी वह ‘सच का सामना’ करने नहीं आएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सबको चौंकाते हुए रूबी ना केवल बोर्ड कार्यालय पहुँची बल्कि लगभग दो घंटे तक तमाम सवालों का सामना भी किया। ये अलग बात है कि वह एक भी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई और तुलसीदास पर निबंध लिखने को कहे जाने पर केवल ‘तुलसीदास प्रणाम’ लिख पाई। बहरहाल, साक्षात्कार के दौरान ही बोर्ड ने पुलिस को सूचना दे दी थी। अंदर साक्षात्कार चल रहा था और बाहर पुलिस रूबी का इंतजार कर रही थी। कार्यालय से बाहर निकलते ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
इस पूरे प्रकरण में एक बड़ा सवाल यह उठता है कि रूबी को गिरफ्तार करने का ‘हासिल’ क्या है? यह तो वही बात हुई कि ‘ब़ाजार’ को पहले खिलौनों से भर दो, ‘खिलौने’ के ‘व्यापारियों’ को सरकारी प्रश्रय दो और फिर उन’ खिलौनों’ से खेलने वाले ‘बच्चों’ को जेल भेज दो। आज रूबी को जेल भेजकर पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिका अपनी पीठ ऐसे ठोक रहे हैं जैसे उन्होंने सबसे बड़े गुनाहगार को उसके अंजाम तक पहुँचा दिया हो। जबकि सच यह है कि इस पूरे प्रकरण में सबसे अधिक नुकसान किसी का हुआ है तो वह रूबी राय ही है। जैसी सामाजिक अवमानना और मानसिक यंत्रणा वो इस वक्त झेल रही होगी वो शब्दों से परे है। और उसके कैरियर की ‘बलि’ तो पहले चढ़ ही चुकी है।
हैरत की बात तो यह कि इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी हमारे पॉलिटिशियन अपनी ‘जात’ नहीं छोड़ रहे। भाजपा ये बताने में लगी है कि लालकेश्वर और उनकी पत्नी उषा सिन्हा जेडीयू से जुड़े रहे हैं तो उपमुख्यमंत्री तेजस्वी सोशल मीडिया पर ये साबित करने में लगे हैं कि बच्चा राय के गहरे ताल्लुकात भाजपा के केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से हैं। यहाँ सभी नेताओं से एक सीधा-सा सवाल यह है कि क्या लालकेश्वर, उषा सिन्हा और बच्चा राय जैसों का ‘जुर्म’ किसी पार्टी या नेता से जुड़े होने के कारण कम या ज्यादा हो जाएगा? और रही बात नेताओं की तो ऐसे भ्रष्टाचारी समाज में पनपेंगे ही नहीं अगर उनका हाथ ऐसे लोगों के सिर पर ना हो। मजे की बात तो यह है कि हमाम में सब नंगे हैं ये सबको पता है पर मीडिया को ‘बाइट’ देने में कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता।
यहाँ एक और दिलचस्प वाकये से आपको वाकिफ कराना जरूरी है और वो यह कि रूबी को ले जाते वक्त पुलिस ने मीडिया की मौजूदगी को देखते हुए उसे ‘गमछा’ ओढ़ने को कहा पर रूबी ने इनकार कर दिया। उसने बड़े साहस के साथ कहा कि “अगर गमछा ही लगाना होता तो आज बोर्ड ऑफिस नहीं आती। मैं बच्चा राय थोड़े ही हूँ कि गमछा ओढ़ाए जा रहे हैं। मैं ऐसे ही मीडिया के सामने जाउँगी।” इसके बावजूद पुलिस ने उसे डांटकर गमछा ओढ़ा दिया। क्या आपको नहीं लगता कि अपनी शर्म छिपाने को रूबी का चेहरा ढंक रहा है सिस्टम? एक सवाल और, सिस्टम का चेहरा हम किस ‘गमछे’ से ढंकेंगे?
‘बोल बिहार’ के लिए डॉ. ए. दीप